प्राच्यदर्शन समीक्षा | Prachy Darshan Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
472
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राच्यदर्शनसभीक्षा .-
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4 ॥|
॥ भूमिका ॥#
|. स्न्प्न्स्प्न्य्न्च्व्न्ल्र्ह स्््। ड़
दमारा देश (भारतवर्ष) दाशनिक तथा धार्मिक कलूई की
लीछाभमि है | थहा प्रत्येक दार्शनिक एप धार्मिक समाज, अपने
अपने साम्प्रदायिक शास्त्रों में भ्रद्धायान द्ोफर उन्हें तत्त्यनिर्णय
में प्रमाण मानते हैं ओर अपर सम्प्रदायों के' शास्त्रों का तिरस्कोर
करते रहते हें | परस्पर कलद्ध करने धाले सम्प्रदायों में बंहुतों
क्रा यह मत है कि, पेदशास्त्र हो एक मात्र प्रामाणिक है तथा
अपर शास्त्र अप्रामाणिक है। इसके विपरीत कितने दी
सास्प्रदायिकों का मत है कि, चेद् अप्रामाणिक है तथा चेद-
विरुद्ध उनके शास्त्र ही प्रामाणिक ४ । वेद की भ्रमाणता की
सिद्धि के निमित्त बैंदिक सम्प्रदायनाले उसे सर्वश ईश्यररचित
मानते हैं; एप वेदबिरोधी सम्पदायों में' से कितने ही अपने
शास्त्र की प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए उसे सर्यज्ञ जीवरचित
मानते हैं | एक सुप्रसिद्ध प्राचीन सम्प्रदाय ऐसा भी है, जो बेद्
की ध्रामाणिकता बनाए रखने फे लिए ही ईश्वए ओर सर्वशता
का निषेध कर, बेद् को नित्य अथवा अरचित (अपोस्पेय) कहता
है । आधुनिक वेदअद्धालु कतिपय बिठान, वेद को तच्त्वदर्शी
ऋषिरचित मोनने छूगे दे | इस प्रकार ध्यासप्रप्रमाण के मम्पन्ध में
विभिन्न साम्प्रदायिकों के परस्पर विरुद्ध विविध मत पाए जाते
है । तथा वेदव्गदियों का भी चेद के विषय में तक्त्वेत्तारचित,
सर्वेशनीवरचित, हरैश्वर (अशरीरि अथवा इझारीरि) द्वारा रचित,
भेरित अबबा शिक्षित एवं अरचित (ज्ञीव या ईश्यरकृत नहीं),
इत्यादि नाना सत विकल्प है |:
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