महाभारत का आधुनिक हिन्दी प्रबंध काव्यों पर प्रभाव | Mahabharat Ka Aadhunik Hindi Prabandh Kavyon Par Prabhav

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Mahabharat Ka Aadhunik Hindi Prabandh Kavyon Par Prabhav by विनय - Vinay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाभारत परिचय भू हापक्िस! ने सप्रमाण सिद्ध किया है दि महाभारत” म झाख्यज, उपाल्यान, इतिहास, आदि सभी शादा का प्रयाग समान प्र्थों म विया गया है भौर सभी में किसी प्राचांन घटना निजयरी झाड्यान वा वणन है । ”स भ्रकार की क्‍्याए प्राचीन बाल स् पौराणिक विश्वासा म घुली मिली थी । इनम एतिहासिक तत्व भी विद्यमान ये ।' महाभारत' को इतिहास बहने वा मुख्य कारण यह है वि यह प्रन्य दा मुख्य बययो कु साथ अनक झय वशावलिया का साहित्यिक वणन बरता है।' वन्‍वणन की प्रधानता वे वारण यह ग्रथ इतिहास को वाटि मे भी प्राता है । किनु भझपन प्रय महत्वपूण तवा व कारण सामाय इतिहास की कांटि से उठवर सम्पूण जीवन का भहाकाव्य ओर धमग्र थ बने जाता है। नमिपारप्य म उप्रश्नवा जी के पहुचने पर ऋषियो न महाभा/त वे महत्व का एतिहासिक ग्रय, पुराण झौर घमग्राय के रुप मे स्वीकार किया है | ऋषि कहते हैं कि “श्राइृष्ण द्रपायन ने जिस प्राचीन इतिहास- रूप पुराण का बणन क्या है दवताग्ना तथा ऋषिया ने अपने अपन लाक में श्रवण करके जिसकी भूरि भूरि प्रशमा वी है जो आख्याना म स््रेप्ठ है जो सम्पूण वेदा व तातप्यानुवृतर ब्रयों सग्लइत है उस भारतीय इतिहास वे परम पुष्य युक्त भावा का, पत्वातयों की व्युत्पत्ति स युक्त ग्रय को, जो सव श्ास्त्रा के अनुवूल व्यवहारा स समथित है उस व्यास की सहिता का हम सुनना चाहत हैं| इस वयन वे आ्राधार पर “महामारत पुराण परम्परा का इतिहास नी सिद्ध हाता है। सम्मवत इसी झाधार का लव॒र कु पाश्चात्य विद्वाना न महाभारत! के प्रथम जय रूप को इतिहास मात्र माना था । उनदे प्रनुसार यह जय इतिहास कौरव-याण्डवों के युद्ध के रूप में लिया गया हागा और बाद म इस महाकाव्य का रूप मिला होगा । यह ता निश्चित है वि भिद्धान्त प्रतिपदन के जिए बाद मे जुड उपाख्याता की १ दी ग्रेट इपिक भाव इडिया, पृ० ५० २ म० श्रादि० १६०८-१० १ ३ द्वपायमेन तत प्रोक्त पुराण परमर्षिणा। सुरव्रह्मपिभिष्चव श्रुत्वा यद्भिपुनितम ॥ ततस्यास्यानवरिष्टस्थ विचित्र पदरपक्‍ण 1 सूष्माय याययुक्‍तस्य॒वेदावेंभू पिततस्प च भारतस्यतिहासस्य पुष्पा ग्रयायसयुताम्‌ सस्कारोपगताह्ाह्मी नानायास्तोपव्‌ हितामू ॥ जनतमेजयस्य याराज्ञो दरमम्पायेन उक्तवान ॥ मयावत सऋषिस्दुष्टया सत्रे दपायनाज्ञया ॥ म० झ्रादि० १११७ २० ४ ए हिंस्टी झ्राव इडियन लिटरेचर, वा०१, पृ० ३१८ ३२०, ३२४ हिस्ट्रो झ्ाव संस्कृत ,लिटरेचर, पृ० २८४ २८५




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