श्री गुरु ग्रन्थ साहित्य | Shri Guru Granth Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
962
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ही इस प्रकार यह पुनीत ग्रंथ श्री गुरूुग्रन्थ साहिब' नागरी कलेवर में सम्पूर्ण
होकर हिन्दी-जगत् को उपलब्ध हो जायगा। हि के
भुवन वाणी ट्स्ट के देवनागरी अक्षयवदट की देशी-विदेशी प्रकाण्ड-
शाखाओ में, सस्कृत, 'क्षरबी, फारतसी, उर्दू, हिन्दी, कश्मीरी, ग्रुरुमुखी,
राजस्थानी, सिन्धी, ग्रुजराती, मराठी, कोंकणी, मलयात्वम, तमिक्ल, 'कन्नड,
तेलुगु, ओड़िआ, बंगला, असमिया, नेपाली, अग्रेजी, इब्रानी, अरामी, यूनानी
आदि के वाहुमय के अनेक अनुपम ग्रन्थ-पसूत और किसलय खिल चुके हैं,
अथवा खिल रहे हैं। इस नागरी अक्षयवट की ग्रुरुमुखी शाखा में प्रस्तुत
ग्रन्थ तीसरा पल्लव-गुच्छ है। विश्व की दिव्य वाणियों के, मागरी कलेवर
में उपलब्ध होने पर, विश्ववन्धुत्व की भावना को प्रेरणा मिलेगी ।
प्राणिमात्न मे परस्पर सदभावना का उदय होगा । परमात्मदशन अथवा
मिलन का यह सर्वोपरि साधन सिद्ध होगा ।
आदि प्रन्य
आदि श्री गुरूग्रन्य साहिब की लिपि गुरमुखी है। पृष्ठ ९ पर प्रस्तुत
गुरमुखी-देवनागरी वर्णमाला चार्ट से स्पष्ट है कि गुरमुखी अक्षर प्रायः
नागरी लिपि के अनुरूप हैं ओर सामान्य ध्यान रखने पर भ्रुरमुखी और
हिन्दी-भाषी परस्पर दोनों लिपियों का सरलता से पाठ कर सकते है।
ग्रन्थ की अधिकांश गुरुवाणियाँ पजाब प्रदेश मे भवतरित है और इस कारण
जन-साधारण उनकी भाषा को पंजाबी के सदृश अनुमान करता है, जबकि
बात ऐसी नही है। श्री गुरूग्रल्थ की भाषा आधुनिक पंजाबी की अपेक्षा
हिन्दी भाषा के अधिक समीप है और हिन्दी-भाषी को पजाबी-भाषी की
अपेक्षा उनका आशय अधिक बोधगम्य है ।
दूसरी भ्रान्ति है कि सामान्यजन समझते हैं कि श्री ग्रुरूग्रन्थ साहिब
सिक््ख-पंथ-मात्र का धर्मग्रन्थ है, उसमे सिक्ख अनुयायियों के लिए ही विधि-
निषेध वरणित होगे; जबकि तथ्य यह नही है। अलबतता यह सही है कि
संकट और त्रास के युग मे एक सत्स्त मानव-समूह इन वाणियों के बल पर
संगठित हुआ और उसके अपूर्व उत्सर्ग एवं बलिदान द्वारा संत्तस्त समाज और
देश ने परित्नाण प्राप्त किया। परन्तु श्री गरुरूग्रन्य साहिब की दिव्य
गुरुवाणियों मे किसी वर्गे-विशेष, पक्ष-विपक्ष, मित्र-शत्तु की झलक मात्र नही
मिलती । सामाजिक एवं धामिक आउम्बरो से बन्ध्रनमुक्त करते हुए,
शाश्वत सदाचार और सदुविचार के द्वारा गुरु-चिन्तन, आत्म-परमात्म-चिन्तन
और मिलन की ओर माचव मात्र को उन्मुख किया गया है। कही यह
गन्ध भी नहीं मिलती कि कौन उत्पीड़ित है, कौन उत्पीड़क । मानवीय
दुर्बलताओ और दुर्वासनाओ को ही शत्रु मानकर साक्षात् ईश्वरस्वरूप ग्रुरु
की कृपा से उनसे स्वतः त्राण, और अन्ततः आवागमन से मुक्ति पाने का
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