माण्डूक्योपनिषद | Mandukyopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
641
श्रेणी :
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माण्डक्योपनिषद्
| मौ० काए
बजट. बा. “हपसिि- बज, नर बरस २2-०० ६ ब्बप्कक बबऊ2े ०९३2...
स्पदो यथा वधा सर्वेषपि
है उस्ती प्रकार श्राणादि व्रिफल्पको
चाकप्रपश्ध: प्राणाध्यास्मविकल्प- | विषम करनेवाठ सम्पूर्ण धखिलात
विषय ओड्डार एवं | स
चात्मखरूपमेत,. तदमिधाय-
कत्वात् । ओड्वारविकारशव्दामि-
पेवश सर्चः प्राणादिरात्म-
जिकरुपो 5मिधानव्यतिरेकेण
नास्ति | “वाचारम्भणं बिकारो
नामघेयम्” (छा० उ० ६1 १॥।
४) “तदस्थेद् वाचा तन्त्या
नाममिर्दाममिः सर्व सितम्”
“सर्व हीद॑ नामनि” इत्पादि-
ओंकार ही है। और वह ( ओंकार )
आत्माका प्रतिपादन करनेवाल
होनेते उसझा खरूप ही है. | तथा
जकारके प्रिकाररूप शब्दोंकि प्रति-
पाद्य आत्माके पिकल्परूप समल
प्राणादि मी अपने प्रतिपादक शब्दोंते
मित्न नहीं हैं, जैता क्रि /विकार
केबड चाणीका वास और लाम-
मात्र है? “उस अक्षक्ता यह सम्पूर्ण
जगत बाणीरूप सूत्रद्वारा नाममयी
डोरीसे व्याप्त है? “यह सब नाममय
ही है? इश्यादि श्रुतियोंत्रि सिद्ध
अतिम्यः । होठ है.
अंत आह-- इसीडिये कहते हैं----
3» ही सब कुछ है
ओमित्येतदक्षरामिद:.. सर्व॑ तस्योपव्याख्यान॑
भूतं मबद्भविष्यदिति सर्वमोक्ार एवं । यचान्य-
लिकालातीतं तदप्योझर एवं ॥ १ ॥
<» यह अक्षर ही सब कुछ है । यह जो कुछ भूत, मरविष्यत और
वर्नमान है उसीकी व्याख्या है, इसलिये यह सब्र ओंक़ार ही है | इसके
सिवा जो अन्य त्रिकाटातीत वस्तु हैं बह भी ओंकार ही है ॥ १ ॥
ओमिस्येदद्क्रमिद सर्व-
३० यद्द अक्षर ही सब्र छुछ है ।
मिति । यदिदमर्थनातमममिघरेय- | यह अमिवेय ( अ्रतिषाथ) रूप
भूत वस्याभिधानान्यतिरेकात्, जितना पदार्यसमूह है. वह अपने
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