गणितीय कोष | Gannitiya Kosh

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Gannitiya Kosh by डॉ० ब्रज मोहन - Dr. Brajmohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६७ ) (2५8 वग (जो प्रचलित है) 3८/४८६ श्रेणी (जो प्रचलित है) खीप14ए सरणी 1211४ ब्यूह इस प्रकार “श्रेणी! शब्द केवछ एक ही अर्थ में छिया जायगा और आ्रान्ति की सभ्भावना बिल्कुछ नहीं रहेगी । इसी प्रकार बहुत से छाब्दों का हम केवल एक ही अथ्थ में प्रयोग कर सकते हैं. । परन्तु यह सब दशाओं में सम्भव नहीं हैं। कुछ शब्द जो रूढ हो गए हैं, उन्हें हटाना वांछनीय नहीं है। 'सम' का शब्द कई अर्थों में प्रचलित हो चुका है:--- (१) सम न्‍+ बराबर समभुजीय न्‍न जिव्पाधाट] समकौणिक ++ >ितुपा-बाएपा4४ समता न जितुपथतए (२) सम न १८४०४४४ ( समभ्ुजीय और समकोीणिक ) सम बहुसुज 1 शिट्टपांबा एछ0ए2का (३) सम न चोरस समतर बन जि॥168, छॉ0९6 500 समतल भूमि ** चौरस भूमि विषमतल न +0पघष्ठों) 50४५८८, रुक्ष भूमि (४) सम 5 पगराफतिश (८0088॥6]) सम गतिदृद्धि न. 010 2८८षा21१४09 (५) सम न फरा0णफ (617 फाकिए 1742८7%४ ) सम छड़ न 7171909179 ४00 (६) सम न्‍न्एक दर




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