विज्ञान परिषद् का मुख-पत्र | Vigyan Parishad Ka Mukhpatra

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Vigyan Parishad Ka Mukhpatra by डॉ० ब्रज मोहन - Dr. Brajmohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९४ | मवेशी की मौत नहीं होती हे। मवेशी को जब किसी छूत की तेज बीमारी से बहुत कमजोरी हो जाती है तो उसके बदन में लाल मृत की बीमारी के कीड़े दब पड़े रहने का भयानक नतीजा हो सकता है । लाल मृत की बीमारी का अमेरिका ओर आस्ट्रेलिया में बहुत ज़ोर पाया जाता है। यह गाय, बैल और मेंसों को ही होती है घोड़ों ओर भेडों को नहीं होती । यही वजह है कि इसको कहीं कहीं मवेशियों का मल रिया कहा जाता है। टेक्सा राज्य में इसका कभी ज्यादा जोर रहने पर इसका नाम रेक्सा का बखार भी पड़ा हे | लाल मृत पेदा करने . वाली इसरी भी कई बीमारियाँ हैं। मसाना या गुदं या पेशाब की नली मे किसी तरह चोट लग जाने पर इं रोग हो जाने पर भी लाल पेशाब होता है । बदहजमी या कमजोरी से भी लाल पेशाब आता है | असली पहचान तो उस एककोशी कीड़े का खून में मोजूद रहना हे जो इस बीमारी का कारण हे । इस बीमारी का कीडा पालने वाली किल नियाँ मवेशियों की खाल से चिपकी रहती हैं और उनका खून चूसकर उनके भीतर इस मारी के कीड़े पहुँचाती हें बीमारी मवेशी के बदन से किलनियाँ गिर कर जमीन पर आती हैं ओर वहीं अंडे देकर मर जाती हैं । . कुछ दिनों में उनसे बच्चे पैदा होते हैं । ये ही एक तन्दुस्त जानवर के बदन से चिपकने पर . उनमें बीमारी फेलाते हैं विज्ञान ` | अक्टूबर लांल मृत की बीलारी दो तरह की होंतो है। एक तेज ओर दूसरी हरकी | हलके असर वाली बीमारी ज्यादा दिनों तक रहती है । तेज असर या उभाड वाली बीमारी प्रायः गर्मी के मौसम में होती हे ओर हलके उभाड़ं वाली जाडों में होती है। . हस्के उभाड बली भीमारी में मवशी का बदन गम होता है, उसमे भस्त ओर बहोशी सी आने लगती है । सिरं ओर कान नीचे भुक जाते हैं। शुरू में मवेशी के पेट में दद हो सकता हे या खन के दस्त आ सकते हैं लेकिन ज्यादातर कब्ज ही रहता है | कब्ज होते ही पेशाब को रंग लाल हो उटता है । मवेशी दुबला हौ जाता हे | लेकिन পক जब तेज हमरे की भीमारी होती ही तो आखिरी ` हालत जर्दी ही पहुँच जाती है। जानवर दुबल नहीं होने पाता, उसकी मौत ही जरदी आती हे । इस बीमारी की खास पहचान यह जान पड़ती है कि मवेशी शुरू में ही कमजोर पड़े जाता है, खड़े होने की हालत में पिछले पैर खास तीर प्र घूमते समय डगमगातेःहैं । तेज हमले की हालत में पेशाब का रग ज्यादीं गहरा हो जाता है, लाल रंग से बदल कर भूरा या काला हो उठता है। कुछ मवेशी तो ढेढ़ दो दिन के भीतर ही मर जाते हैं। मामूली हमला होने पर कमजोर होते जा कर दो हफ्ते में मवेशी मर सकता है। ४० से ९० फीसदी तक बीमार मवेशी मर ही जाते हैं ।




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