एक विवाहिता | Ek Vivahita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)था। कितु ऐसा नहीं हे। उनके स्थान पर जो आयेगा, तव उसी
गे खातिर वह करेगा। यही है दुनिया, यही संसार का उसूल है।
एक आता है, और उसके चले जाने के वाद फिर कोई उसके स्थान
पर आ जाता है|
इसी का नाम तो नौकरी है। नौकरी ही तो सब-कुछ नहीं
हैं। इसके वाद जीवन भी तो है। जीवन का भी यही नियम है।
इस संसार से भी इसी तरह एक दिन चले जाना होगा। मंत्री
चला जायेगा, सचिव चला जायेगा, हेडकलर्क चला जायेगा, आज
जो स्टाफ़ है, वह भी एक दिन चला जायेगा। रहेगा सिर्फ़
सचिवालय नामक मकान | यह मकान भी क्या चिरकाल के लिए
रहेगा ? यह भी नहीं रहेगा।
वह भी एक दिन नहीं रहेंगे। उसके वाद यदि कुछ रहेगा
तो उन्तका उपन्यास 'मानव-सुंदरी' संभवत: रहेगा तो रहेगा।
कारण, विक्री चाहे न हुई हो, सभी पत्रिकाओं ने प्रशंसा की है ।
कितु यह भी हो सकता है, प्रशंसा लोगों ने की है, वह भी
संभवतः आई० सी० एस० नोकरी के कारण ही की हो। आज
नौकरी चली गयी, साथ-साथ हो सकता है, उनकी किताब की
बात भी लोग भूल जायें। घर की ओर आ रहे थे, तव ये ही
वातें उनके मन में आ रही थीं ।
सिसेज़ गांगुली भी पास में बैठी थीं। वे क्या सोचती थीं, क्या
मालूम । पति के कारण उनकी भी एक खातिर थी, समाज में ।
सभी पार्टियों में पति के साथ उनको भी निमंत्रण होता । उन्हें
ऐद्वर्य दिखलाने का एक मौक़ा मिलता। इसके वाद कलकत्ता
जाने पर संभवत: ऐसे निमंत्रण नहीं मिलेंगे ।
कितु जिस दिन नौकरी पकड़ी थी, उस दिन भी तो यह जानते
थे कि यह कुर्सी हमेशा के लिए नहीं रहेगी। कुर्सी से एक दिन
उन्हें विदा लेनी होगी। फलतः: दोनों इस परिस्थिति के लिए मन-
विवाहिता .
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