सत्संग सुधा | Satyangh Sudha

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Satyangh Sudha by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रभुके साथ सम्पर्क श्षः इम्रे इस जीवनमें तथा जीवनके उस पार भी--सर्वत्र सदाके व्थि उञाय हो जाय | सचमुच ही यदि रोगों-दुःखोंसे आण पानेके उद््देश्य- से ही ऐसे प्रत्येक अवसरपर ही यदि हम प्रमुको पुकारे, सरल विश्वास- के साथ, एकान्त मनसे उनकी सहापताका आवाहन करें तो दमा यहाँका रोग-दुःख तो मिट जाय, बिना ओपधि किये, बिना बुछ प्रयन किये ही मिंट जाय, साथ ही हमारे अंदर प्रमुके ग्रति शद्वाका भी उन्‍्मेय होने छगे और यह श्रद्धा निरन्तर बढ़ती ही जाय । इतना ही नहीं, अन्तमें कमी किसी दिन अनादि भक्ञानसे मुँदी हुई हमर आँखें भी खुल जायें, मोह-निद्रा दृठकर हमें यह अनुभव होने शेगे कि यहाँ तो जगत नामक कोई वस्तु अतहमें है ही नहीं, हैं , केंबड एकमात्र प्रमु, और है उनकी आनन्दमयी लीछा तथा यह / हलुभव करके हम रुद्ाके लिये सुखी हो जाये । आजसे अठारह वर्ष पहलेकी एक सच्ची घटना है। १९३४ ईंड्ीकी बात है। पोर्टूस माउथ नगके मिस्टर आल्मेड जी-सरे ( जा, 3116व 0- 8६७1९ ) नामक सजनभी आँखोंमें खक्लेघा ( 019०८७०७ ) नामक रोग हो गया । आँखका एक मभर्थकर रोग है, जो सहजमें अच्छा नहीं होता | कड़क सदनने उन्हें बताया कि यदि तुरंत चौग लगाया'जाय तो पो योडी-छी रोझनी बच सकती है, पर यदि चीर कानेंमे मी देर ग्यी तो आप सर्चचा अंगे हो जायेंगे | है है नहीं, इतनी भग्रेकर पीड़ा शुरू हो जायगी कि नह देनेपर ही बह शान्‍त्त होगो। कित मिस्टर डा 1 द्ह्क श््ु




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