जीवाजीवाभिगमसूत्र भाग - 2 | Jivajivabhigamasutra Bhag - 2

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Jivajivabhigamasutra Bhag - 2  by स्वामी श्री ब्रजलाल जी महाराज - Swami Shri Brajalal JI Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तृतीय प्रतिपत्ति : लवणशिणा कौ वक्तव्यता] (११ लवणसमुद्र की ग्राभ्यन्तर वेला को भ्रर्थात्‌ जम्बूद्वीप की ओर बढ़ती हुई शिखा को और उस पर बढ़ते हुए जल को सोमा से आगे बढ़ने से रोकने वाले भवनपतिनिकाय के अन्तर्गत आने थाले वयालीस हजार नागकुमार देव हैं । इसी तरह लवणसमुद्र की वाह्मय वेला अर्थात्‌ धातकीखण्ड की ओोर अ्भिमुख होकर बढ़ने वाली शिखा और उसके ऊपर की अतिरेक वृद्धि को झागे बढ़ने से रोकने चाले बहुत्तर हजार नागकुमार देव हैं । लवणसमुद्र के ग्रग्रोदक को (देशोन अभ्र्धयोजन से ऊपर बढ़ने वाले जल को) रोकने वाले साठ हजार मागकुमार देव हैं। ये नागकुमार देव लवणसमुद्र की वेला को मर्यादा में रखते हैं । इन सब वेलंघर नागकुमारों को सख्या एक लाख चौहृत्तर हजार है। १५९. (प्र)-कति णं भंते ! बेलंधरा णागराया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि वेलंधरा णागराया पण्णता, त॑ं जहा-भोधूमे, सिवएं, संसे, मगोसिलए । एतेसि ण॑ भंते ! चउण्हं घेलंधरणागरायार्ण फति आवासपव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि आवासपब्वया प८्णत्ता, त॑ जहा-गोयूभे, उदग॒भासे, संसे, दगसोमाए । फहि ण॑ भंते ! गोयूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोयूभे णाम भ्रावासपव्वए पष्णसे ? गोयमा ! जंथुद्दीये दीवे मंदरस्स पुरत्यिमेणं लवर्ण स8६ं वायालोस जोयणसहस्साईं ओगाहित्ता एत्य ण॑ गोपूभस्स घेलंघधरणागरायस्स गोयूमे णामं प्रावासपव्वए पण्णत्ते सत्तरत एकबीसाईं जोयणसयाई उद्ढ॑ उच्चतेणं चत्तारि तीसे ज़ोयणसए फोसं च उच्घेणं मूले दसवावीसे जोयणसए श्रायामविष्यंभेणं, मण्से सत्ततेवोसे जोपणसए उर्बारे चत्तारि चउवीसे जोगणसए आयामधिवखंभेणं मूले तिष्णि जोयणसहस्साई दोष्णि गे बत्तीसुत्ते जोयणसए किचिविसेसु्णे परिफ्णेदेणं, मज्से दो जोयणसहस्साई दोष्णि य छलसीए जोयणसए फिचिविसेसूर् परिक्सेवेणं, भूले धित्यिण्णे सज्से संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंडाणसंठिए सब्दफणगामए अच्छे जाव पडिझूये । से ण॑ एगाए पठमवरथेहयाएं एगेणं थ घणसंडेणं सब्यप्ो समंता संपरिकिखत्ते | दोण्ह्‌ थि वष्णप्रो १ गोयूमस्स ण॑ प्रावासपव्वयस्स उर्वारे बहुसमरमणिज्जे भूप्रिभागे पण्णते जाब आसपंति 1 तस्स ण॑ बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसमाए एत्य ण॑ एगे महूं पासायवर्डेसए यावद्द जोयणडं च उड्ढं उच्चत्तेण त॑ं चेव पमा्ण अ्रद्धं श्रापामधिवर्धभेणं वण्णमो जाव सीहासण्ण सपरियारं । से फेणदट्ठेणं भंते ! एवं चुच्चइ गोयूभे आवासपव्वए गोयूसे आवासपब्यए ? गोयमा | ग्रोयूप्ते णं आवासपब्वए तत्य तत्य देसे तहिं तहि बहुओ णुट्टापृट्टियापो जाव गोयूभवष्णाईं बहुई उप्पलाईं तहेव जाव गोयूने तत्य देवें महिड्डिए जाय पलिओोवमद्रुईए परिवसति। से ण॑ तत्य चउण्हूं सामाणियसाहस्सी्ण जाव गोयूभपस्स प्रावासपव्ययस्स गोयूभाए रायहाणोएं जाव घिहूरइ | से तेणट्ठे्णं जब णिच्चा ६ रायहाणी पुच्छा ?े गोयमा ! गोयूभस्स श्यावासपस्वयस्स पुरस्यिमे् तिरियमसंसेज्जे दोवसमुद्दे घीईयइता प्रष्णम्भि लवणसमुद्दें त॑ चेष पमा्ण तहेव सब्दं




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