हिन्दी ऋग्वेद | Hindi Rigved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
133 MB
कुल पष्ठ :
श्रेणी :
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No Information available about रामगोविन्द त्रिवेदी वेदंतशास्त्री - Ramgovind Trivedi Vedantshastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रा ।
हे तो ऋण्द के सन्त्रों का निर्माण-काल पचद्तत्तर हजार वर्ष तक जा
पहुंचता है। यह मत डा० अविनाशचन्द्र दास का हैं।
बेद के प्रतिपाथ, उपदेश, संस्कृति, अपूर्वता आदि पर विचार न
कर थादचात्त्यों ने काल-निर्णय पर ही अधिक मायापच्ची की है।
परत सुगारिलियों ले राय अन्याय अमाणों को देखकर जर्गद
इलेगन ने लिखा हैँ कि वेद संसार में सबसे प्राचीन
अन्य हैं। इनका समय नहीं निश्चित किया जा सकता। इनकी भाषा
आरतीयों के लिए भी उतनी ही कठिन है, जितनी विदेशियों के छिए।'
दूसरे जर्मन वेद-विद्यार्थी वेबर ने छिखा हे--वेदों का समय निश्चित
नहीं किया जा सकता। ये उस तिथि के बने हुए हे, जहाँ तक पहुंचने
के लिए हमारे पास उपयुक्त साधन नहीं हे । वर्तमान प्रमाण-राशि
हम लोगों को उस समय के उन्नत शिखर पर पहुंचाने में असमर्थ है।'
यह उन बेवर साहब की राय है, जिन्होंने वेदाघ्ययन में अपना
सारा जीवन खपा डाला था।
परन्तु जो वेद-नित्यतावादी हें, उनके लिए तो काछ-निर्णय का
प्रबन ही नहीं है।
ऋग्ेद-संहिता
छन्दों से युक्त मन््त्रों को ऋक् (ऋचा) कहा जाता है। वेद
शब्द का अर्थ ज्ञान है। ऋचाओं का जो ज्ञान है, उसे ऋण्वेद कहते
हैं। ऋचा-विषयक ज्ञान चराचर-्यापी है।
गुप्त कथन का नाम मन्त्र हैं। देवादि-स्तुति में प्रभुक्त अर्थ का
स्मरण करानेवाले वाक्य को भी मत्त्र कहा जाता हैं | जैसे औषध
में रोग को दुर कर तीरोग करने की स्वाभाविक शक्ति होती है, वैसे
ही मन्त्र में सारी विष्त्याधाओं को दूर कर, दिव्य शक्ति और
सूचि पैदा करने की स्वाभाविक शक्ति है। जैसे चुम्बक में छौहा-
की_ स्वाभाविक शक्ति है, वैसे ही मन्त्र में फल देने की, स्वर्ग
मोक्ष आदि देने की और मनःकामना पूर्ण करने की स्वाभाविक
शत है। मन्त्र की यह अदूभुत शक्ति संसार में प्रति दिन देखी
जाती है।
अन््त्रों का कपुका तत प्रयोग और व्यवहार होने पर जगत में ऐसे
प्रकम्प होते हैं, असयुष्त-अव्यक्त झाक्तियों में से कोई एक विशे८
शक्ति जागरित और अभिव्यक्त होती हैे। उस शक्ति को लोग
सत्त्र-देवता कहते हें। जहाँ यह कहां गया हो कि अमुक मत्तरों के
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