कव्वे और काला पानी | Kavve Aur Kala Pani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झौर भीतर कुछ भी नहीं होता। लेकिन यह दूमावा और दिनों की तरह
मही था। यह रुका नहीं, इसलिए अन्त में मुसे ही रूकना पडा / इस बार
कोई शक नहीं हुआ । सचमुच कोई चीख रहा था, “स्टॉप, स्टॉप* ' 1 मैने
पीछे मुड़कर देखा, लडकी खडी होकर दोनो हाय हवा मे हिला रही थी ।
सच ! मैं किर पकड़ा गया था--दोदारा से। बेवकफों की तरह मैं
उसवी जमीन पर चला आया था, चार पेड़ो से घिरा हुआ। इस बार माँ
ओर बेटी दोनो हँस रहे ये ।
थे झूठी गर्मियों के दिन थे । ये दिन ज्यादा देर नहीं टिकेंगे, इसे सब जानते
थरे। लायब्रेरी उज़ाड रहने लगी । मेरे पड़ोसी, बूढ़ें पेंझनयाफ्ता लोग, सब
धाहर घूप मे बैठने लगे। आकाश इतना नीला दिखायी देता कि सन्दन की
घुन्ध भी उसे मैला न कर पाती। उसके नीचे पार्क एक हरे टापू-सा लेटा
रहता।
ग्रेठा (यह उसका नाम था) हमेशा वहाँ दिखायी देती थी। कभी
दिखायी न देती, तो भी बेंच पर उसका बस्ता देखकर पता चल जाता कि
वह यहीं कहीं है, किसी कोने मे दुवकी है । मैं थचता हुआ आता, पेड़ो से,
झाड़ियों से, घाम के फूलों से। हर रोज यह कही-न-कहीं, एक अदृश्य
भगानक फन््दा छोड़ जाती और जब पूरी सतकंता के बावजूद मेरा पाँव
उसमें फँम जाता, तो वह बदहबास चीखती हुई मेरे सामने आ खड़ी होती।
मैं पढ़ड लिया जाता । छोड दिया जाता | फिर पकड लिया जाता**'1
यह सेल नही पा । वह एक पूरी दुनिया थी । उस दुनिया से मेरा कोई
बास्ता नहीं था--हा्लां कि मैं कभी-कभी उसमे बुला लिया जाता या। ड्रामे
में एक ऐक्स्ट्रा की तरह। मुमे हमेशा तेयार रहना पडता था, क्योकि वह
मुझे किसी भी समय बुला सकती थी ) एक दोपहर हम दोनों बेंच पर बैठे
ये, अचानक यह उठ घड़ी हुई ।
“हुलो मिसेज टामस्त*1 उसने मुस्कराते हुए कहा, “आज आप बहुत
दिन बाद दिखायी दो --यह मेरे इण्डियत दोस्त हैं, इनसे मिलिए |”
मैं अवाफ् उमे देखता रहा 1 वहाँ कोई न था।
“आप द॑ढठे हैं? इनसे हाथ मिलाइए 1” उसने मुझे कुछ झिड़कते हुए
दूसरी दुनिया / 25
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