कुप्रीन की कहानियां | Kuprin Ki Kahaniyan

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Kuprin Ki Kahaniyan by निर्मल वर्मा - Nirmal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कनेखियों से बोबरोव को देख रहा था । ज्यों ही वह उसके निकट श्राया फेयरवे ने बिदकना शुरू कर दिया । कभी श्रपनी गरदन देढ़ी कर लेता कभी अपने पिछने परों को पटकता हुमा मिट्टी उछालने लगता । बोवरोव एक पांव से उछल्रता-कूदता दूसरा पांव रेक्राब में डालने का प्रयत्न कर रहा था 1 लगाम छोड़ दो मित्रोफान 1 रेकाब में श्राखिरकार अपना पांव फंसा लेने पर वह चिल्लाया । झगले ही क्षण एक छलांग के साथ वह काठी पर सवार हो गया । सवार की एड़ लगते ही फेयरवे का विरोध समास हो गया अपने सिर को भटकाते श्रौर घघेंराते हुए उसने कई बार चाल बदली । फाटक के बाहर निकलते ही वह चोकड़ी भरता हुमा हवा से बातें करने लगा । कुछ ही देर में घोड़े की तेज सवारी कानों में सीटी बजाती हुई ठंडी कड़कड़ाती हवा श्ौर पतभकर की नम धरती की ताजी गन्घ ने कुछ ऐसा जादू किया कि बोवरोव की थकान श्रौर सुस्ती जाती रही श्रौर रगों में खून की रवानी तेज हो गयी । इसके श्रलावा यह भी बात थी कि जिनेंस्को परिवार से भेंट करने के लिए वह जब भी निकलता तो एक सुखद श्रौर उत्तेजक श्रानन्द का झनुभव करता | मां बाप श्रौर पांच लड़कियों का जिनेन्को-परिवार था । पिता मिल के गोदाम का संचालक था । ऊपर से देखने में श्रालसी श्रौर भलामानस दीखनेवालः यह भीम वास्तव में बड़ा चलता-पुर्जा और चालबाज था । वह उन लोगों में से था जो सबके मुंह पर सच्ची बात कह देने के बहाने श्रफेसरों को चिकनी-चुपड़ी बातों से रिभाते हैं चाहे वे बातें कितने ही भोंड़ि तरीके से क्यों न कही गयीं हों निर्लेज्ज होकर श्रपने साथियों की चुगली करते हैं श्रौर अपने श्राधीन कर्मचारियों के साथ वहशियाना तानाशाह्दी बरतते हैं। वह जरा-जरा सी बात पर बहस करने लगता गला फाड़ कर चिल्लाता श्रौर किसी की बात को सुनने को तैथार न होता । वह बढ़िया भोजन का शौकीन था श्रौर युक्रेन के कोरस गीतों से उसे गहरा लगाव था हालांकि वह उन्हें हमेशा बेसुरी श्रावाज में गाता । उसकी पत्नी का उस पर खाम्ख्वाह रोब गालिब था । वह एक बीमार स्त्री थी -- बातचीत में श्रशिष्ट भ्रौर फूहड़ । उसकी छोटी-छोटी भुरी श्रांखें बहुत प्रजीब ढंग से एक दूसरे से सटी हुई थीं । लड़कियों के नाम माका वेता दूरा नीना श्रौर कास्या थे । सब लड़कियों के लिए परिवार में श्रलग-ग्रलग भूमिका निर्धारित थी । माका का चेहरा बगल से देखने पर मछली का सा लगता था । वह अपने साधु-स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थी । उसके मां-बाप हमेशा यहीं कहते हमारी माका तो विनय की साक्षात सूर्ति है । बाग में टहलते हुए या शाम को चाय हरे




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