वर्ण व्यवस्था का वैदिक रूप | Varna Vyavastha Ka Vaidik Roop

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Varna Vyavastha Ka Vaidik Roop by ज्ञानचन्द आर्य - Gyan Chand Arya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. (के इस चंदिक शुद्र से भिन्न है और भ्रन्थस्ता के छनुसार वह पौराणिक शुद्र वैदिक दुस्य॒ है; चैदिक शुद्र नहीं । यह वैदिक दस्यु पौराणिक शूद्र केसे घना, इसका मी दे दने इस मंध से पिलता है, चद यदू दि उन दस्पुआ को श्ार्ये-ब्रेष्ट थनाने 'और उनमे बुशइया का, छुड़ाने के बदश्य से उसहें शूद के श्रम कार्यों मेंसे कु चदई तुइार अ दि के कार्यो काने के लिये दिये गये 'औीर वे ऐसा क्ण्ने भी लगे इसका होते-दोते परिणाम यह हुआ कि वे भी शूदु कद्दे जाने लगे । परन्तु उनके साध, दस्युओं के साथ किये जाने का जो व्यवहार था, उसमें दब्दीली नहीं की राई, यइ व्यगदार स्यों का दयों वना रहा । इसलिए वे शुद्र तो बने परन्तु श्वपने से छूणा दूर नही करा सके, घल्कि श्रपने साथ चेदिक शद्वी को मी ले बैठे छोर दोने एक कोटि में गिने 'और माने जाने लगे । ग्रथ पर एक दृप्ट डालने से हो सष्ट प्रगठ होने लगता है कि वह झत्यन्त परिश्रम योर सावधानी से लिया गया है 'छोर प्िपय से सम्बन्धित उसमें प्राय कोई वात नहीं छूटने पाई है । अधिक से झधिक उसका प्रचार होगा यह मैं आशा करता हूँ। ध्४५ --नासयण स्वामी




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