वैदिक अर्थव्यवस्था | Vaidik Arth Vyavastha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vaidik Arth Vyavastha by डॉ महावीर - Dr. Mahavir

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महावीर - Mahaveer

Add Infomation AboutMahaveer

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वेदों की यहत्ता 715 में अन्य कोई ग्रन्थ नहीं कर सकता। इसे उपनिषदों का सार कहा गया।' यह गीता वेद के विषय में कहती है- “कर्तव्य कर्मों का बोध वेद के द्वारा होता है और वह वेद अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ है।''* परमात्मा के स्वरूप का बोध वेद द्वारा ही होता है इस सत्य को उद्घाटित करते हुए गीता कहती है- **सब वेदों के द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ, मैं वेदान्तकृत्‌ हूँ अर्थात्‌ वेदों और उनमें प्रतिपादित सिद्धान्तों का रचयिता मैं ही हूँ और वेदों का पूर्ण ज्ञाता में ही हूँ।''? वैदिक साहित्य के पश्चात्‌ लौकिक साहित्य में आदि-कवि वाल्मीकि-कृत रामायण का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। यह परवर्ती महाकवियों का उपजीव्य महाकाव्य है। इस अमर-रचना में श्रीराम के गुणों के वर्णन प्रसड्ग में वेद की महिमा वर्णित है।” वीर हनुमान की योग्यता का वर्णन करते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं- *' जिसने ऋग्वेद को नहीं पढ़ा है जिसने यजुर्वेद को नहीं सीखा और जो सामवेद को नहीं जानता वह इस प्रकार की बात नहीं कह सकता।”'* रामायण की तरह व्यास-प्रणीत महाभारत भारतीय संस्कृति, साहित्य, इतिहास, राजनीति और अध्यात्म का अक्षयकोष है। महाभारतकार वेद का गुणगान करते हुए लिखते हैं- वेद की वाणी स्वयम्भू परमात्मा द्वारा दी गई ऐसी विद्या है जिसका न आदि है न विनाश अर्थात्‌ जो नित्य है। ऋषियों के नामों को, वेदों में वर्णित सृष्टियों को, भूतों के नाना रूपों को और विभिन्‍न कर्मों के प्रवर्तन को, वह ईश्वर सृष्टि के प्रारम्भ में वेद के शब्दों में ही बनाता है।' इस प्रकार वेदों की महिमा इस देश के समग्र वैदिक, लौकिक साहित्य में व्याप्त है। स्वयं भगवती श्रुति भी स्थान-स्थान पर इस विषय को प्रकाशित कर रही है। एक स्थान पर परमात्मा कहते हैं- *' हे मनुष्यो। तुम्हारे लिये मैंने वरदान देने वाली वेद माता की स्तुति कर दी है। वह मैंने तुम्हारे आगे प्रस्तुत कर दी है। वह द्विजों को पवित्र करने वाली है। आयु अर्थात्‌ दीर्घजीवन, प्राण, सन्तान, पशु, कीर्ति, धन-सम्पत्ति और ब्रह्मवर्चस्‌ वेद-माता प्रदान करती है। इन पदार्थों को ब्रह्मार्पण कर ब्रह्मललोक को प्राप्त करो।' अथर्ववेद में कहा गया- “** अपूर्व गुणों वाले परमात्मा द्वारा की गई वेद की वाणियां सत्य ज्ञान का उपदेश करती हुई अन्त में जहाँ पहुँचती हैं वह महान्‌ ब्रह्म ही है।'” 1. सर्वोपनिषदो गावों दोग्धा. गोपालनन्दन: 1 पार्थों वत्सो सुधी भॉक्ति दुग्ध गीतामुर्तं महत्‌ ॥ गीतामहात्म्य 2. कर्म ब्रह्मोदूभयं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्‌ । गीता 3/75 3. वेदेश्च सर्वेरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविंदेव चाहम्‌ 1 गीता 15/75 4. वेदवेदाड्‌गतत्त्वज्ञो धनुर्वेदे च निष्ठित: 1 सर्वशास्त्रार्थतत््वज्ञ: स्मृत्तिमान्‌ प्रतिभानवान्‌ ॥। वा.रा. बालकाण्ड 7/14, 15 5. अनादिनिधना विद्या वागुत्सुष्टा स्वयंशुवा, ऋषीणां नामधेयानि याश्च वेदेषु सृष्टय; । नानारूप॑ं च भूतानों कर्मणां च प्रवर्तनमु, वेदशब्देथ्य एवादौ निर्मिमीते स ईश्वर: ॥ शान्तिपर्व 6. स्तुत्ता मया वरदा वेदसाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानामू, आयु: प्राण प्रजां पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसस। सह दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकमू। अथर्व, 19/71/! 7. आपूर्वेगेषिता वाचस्ता वदन्ति यथायथम्‌ । वदन्तीर्यत्र गच्छन्ति तदाहुब्रह्मिणं महत्‌ ॥। अथर्व, 70/8/33




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now