भारतीय संस्कृति | Bharatiy Sanskriti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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17 भी माता जा सकता है। जैन धर्म के कुछ चिह्न सिंधु घाटी के भग्नावशेषों में भी पाये गये हैं । जो लोग जैन धर्म और बौद्ध धर्म का एक ही सांस में उल्लेख कर देते हैं वे गलती करते हैं। जैन धर्म बौद्ध धर्म से बहुत पुराना है। बौद्ध धर्म की विशेषता उसकी प्राचीनता न होकर उसका भारत के बाहर दूर-दूर तक फंल कर भारतीय संस्क्ृति का संदेश ले जाना है। भ्रब तो इस देश में लगभग पन्‍न्द्रह लाख जेन ही रह गये हैं। दक्षिण में भी जैन धर्म फैला, जिससे उत्तर और दक्षिण की एकता को बहुत सहायता पहुंची। भारतीय संस्क्रति और सम्यता में जैन धर्म का भी अत्यन्त उच्च स्थान है । शने:-शने: वैदिक युग के यज्ञों और कर्म-काण्ड में इतना अ्रधिक आडम्बर और हिंसा बढ़ी कि उसका विरोध होना स्वाभाविक हो गया और उपनिषद्‌ काल आया । उपनिषदों की संख्या काफी बड़ी है और वे सब एक ही काल में निर्मित हुए यह भी नहीं है। जिस समय उपनिषदों का चिंतन आरम्भ हुआ वह समय कुछ ऐसा था, जब दुनियां में बड़े-बड़े चितक पैदा हुए। चीन के कन्फृशियस्‌ और लाउजी, ईरान के जरथुस्त्र, यूनान के पिथेयोरस, फिलिस्तीन के जिरेमिया और इजकिल इसी काल में हुए । उपनिषदों के चिन्तन में एक ब्रह्म की कल्पना प्रमुख है। परन्तु उपनिषदों का चिन्तन एक ओर यदि संसार के दार्शनिक चिन्तन का सर्वोत्कृष्ट सूक्ष्मतम चिन्तन है तो दूसरी ओर वह इस देश में दने:-शर्ने: निष्क्रियता लाया। अतः पहले भगवान्‌ राम ने, बाद में भगवांन्‌ कृष्ण ने और तदुपरान्त भगवान्‌ बुद्ध ने पुन: कर्म की महत्ता स्थापित की । अनेक विद्वानों के मतानुसार में भी रामायण और महाभारत का काल कुछ उपनिषदों के बाद का काल मानता हूं। रामायण में कर्मंठ जीवन और व्यष्टि एवं समष्टि के कत्तेव्यों का ज॑सा निरूपण किया गया है, वैसा हमें संसार के किसी भी साहित्य में नहीं मिलता । ज्ञान को दृष्टि से महाभारत संसार का सर्वश्रेष्ठ और उच्चतम विश्वकोष माना जाता है। भगवान्‌ श्रीकृष्ण का भगवद्गीता के रूप में जो उपदेश महाभारत में हुआ है और भगवद्‌- गीता में जिस प्रकार के तात्विक ज्ञान तथा व्यावहारिक अ्रनासक्ति कर्मयोग .का प्रतिपादन हुआ है, वैसा संसार के किसी ग्रंथ में तहीं। भगवान्‌ कृष्ण ने तो अनेक प्रचलित शब्दों का अर्थ ही बदल दिया है ; जैसे यज्ञ । वेद-मंत्रों के साथ वेदी में श्राहुति डालने वाले यज्ञों और भगवान्‌ कृष्ण के यज्ञ में बहुत अन्तर है। भगवान्‌ कृष्ण के द्वारा प्रतिपादित यज्ञ में तो मानव जीवन के समस्त सुपक्षी कर्म झा जाते हैं । । महाभारत के पश्चात्‌ पुराणों के आधुनिक रूपों का समय आया; यद्यपि अधिकांश पुराणों का वर्तमान रूप तो इसके भी कहीं बाद का है; यहां तक कि कुछ विद्वानों के मता- नुसार वे गुप्तकाल में निर्मित हुए । इसके बाद भगवात्त बुद्ध का समय आया । रामायण, महाभारत और पौराणिक काल में जो संन्‍्यासधर्म कुछ पिछड़ गया था, उसका पुन: दौर-दौरा हुआ | परन्तु जो लोग यह मानते हैं कि संन्यास मार्ग महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध की देन है, वे गलती करते हैं । महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के समय भी यहां संन्‍्यासियों की अनेक संस्थाएं थीं। इनमें से प्रसिद्ध संस्थाओं की संख्या त्रेसठ मानी जाती है। और इंन त्रेसठ में छः तो बहुत ही प्रसिद्ध थीं। गौतम बुद्ध का महान्‌ व्यक्तित्व बौद्धमत का सबसे बड़ा श्राधार था, ऐसा ऊपर कहा गया है। भगवान्‌ बुद्ध ने कर्म की महत्ता पर बल दिया, परन्तु चूंकि वे स्वयं संन्‍्यासी थे




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