पराग | Parag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दिग्दशन
हिंदू-धर्-महत्तत हृदय में अकित होगा।
उससे अपना नाम कमी न कलकित होगा।
भारत में चारों तरफ लाखो तौर्थ-स्थान हैं,
जिनमे होते नित्य ही जप, तप, पूता, दान हैं।
(१८)
खोदी जाती भूमि जहाँ, उस जगह तुम्हारे
याग-नयूप या योग-रूप ही मिलते सारे।
नदियों में भी आज फूल चदन से चर्चित
बहते हैं | हर घड़ी रहे प्रतिमा भी आर्चित।
यहीं पहाड़ों पर मिलें योगी लोग कही-कही |
घन्य अनन्य गिशिप यह अन्य देश में है नहीं।
(२०)
जैसे देखो, और जिधर देखो भारत में ,
धर्म-मायना यहाँ मिलेगी सपकके मत में।
धर्म-कर्म की भूमि इसी से इसको कहते ;
इसमें है अपत्तार ईश के होते रहते।
उन्नति होनी हे नहीं धर्म छोड़कर देश की 3
शप-मेत्रा के तुल्य हे नाहक नकल विदेश की।
(२१)
धर्मयान के रिना त्याय हो नहीं सकेगा
धर्म-भाय से हीन सभी में स्वार्थ तकेगा।
4 अश
User Reviews
No Reviews | Add Yours...