गांधी का दर्शन | Gandhi Ka Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चानवी का जीवनै-दूस 1 [ ३ पर उस कमरे में जात हो वह अन्धा हाँ गया, बोलने का होश जाता रहा । लफ्या से स्तब्ध होकर बहु उस स्त्री के पास चारपाई पर बैठ गया, पर बोली 'त निकली । स्त्री रुष्ट हुई ओर दो-चार गालियां देकद दर्वाज की दा दिखाई ! इस बचाव से उसे दम तो आई पर बाद को दुख ने हुआ । ऐसे ही उसके जीबन में चार थोर अवसर आये और परमात्मा ने उसको सर्वदा ऐसे ही बचाया । सिगरेट पीने की कुटेव थी उसको पड़ी । पेंसा घर से अधिक ले थाते के कारण उसे इसके लिए चोरी भी करनी पड़ी । पिंतूभक्त होने के कारण सह पिता की सेवा करता था । पर एक ओर पितूभक्ति थी तो दूसरी ओर स्त्री-मासक्ति । इन दोनों से वह बंधा या 1 देवयोग से जिस घड़ी उसके पिता की सृत्यु हुई उल्त समय बहू अपनी स्वी के साथ था और रूण पिता की सेवा को छोड़कर वहाँ था । इस अकार मोहुनदास बिलकुल साधारण था । सब करते-करबाति १०८७ में उसने मेट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की भौर माता के सामने प्रतिज्ञा करके कि बहू मास, मांदरा ओर मैथुन से दूर रहेगा; बिलायत मे बच्स्टिरी पढ़ने गया । न विलावंत में कानून को पढ़ाई के अतिरिक्त उसने पुराती ओर नयी बाइबिल पढ़ी सोर उचल प्रभोवत हुआ । कुछ भित्नो के संपर्क के कारण उसे गीता का भी पढ़ना पड़ा । एडविंत आर्लह्डि के गीता का अनुवाद तथा बुद्ध बर्ति का अनुवाद उसको अत्यन्त पसंद आगे । थियोसोफिकल सोसाइटी से मी उसका परिचय हुआ जौ इसका साहित्य पढ़ने को मिला । आधरण की युंष्टि से उसने माता कं समझ 'की गई तीवो प्रतिज्ञाओं का पालन किया ओर सादंगा से जीवन बिताया । १८९१ से कहू बेरिस्टर बना, इंग्लड के हाईकों से ढाइ शिलिंग देकर अपना दाम दजें करवा आर फिर उसी सान दविन्दुस्तात लौट भाया । आने पर रायबद्र माई से पश्थिय हुआ मोर उनसे धर्म की प्ररणा मिन्नी । राजकोट और बस्बई में उसने वकालत शुरू की ! एक मामिला पाकर वह नेटाल, दक्षिण अफ्रीका में वकालत करने सरल १८९३ में गया 1 मुकदमे का मुवक्किल दक्षिण अफ्रीका में रहने बाला एक भारतोथ था जिसका नीम सेठ अन्दुल्ता थां 1 जो प्रकाश भभी तक मंद या. गुप्त था, देह दक्षिण अफ्रीका में जाकय अकट दोएयां |




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