संस्कृत साहित्य कोश | Sanskrit Sahitya Kosh

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Sanskrit Sahitya Kosh by डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा' - Dr. Rajvansh Sahay 'Hira'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनर्चराधथ ] (९ ) [ अनर्घराधव कलर शनि पलपल सनागपारगलाापनाागा पर्यन्त सम्पूर्ण कथा को नाटक का रूप दिया है। रामायण की कथा को एक नाटक मैं निवद्ध करने में कि का प्रयास सफल भ हो सका है और इसका कथानक बिखर गया है, फिर भी रोजकता तथा काव्यात्मकता का इसमें अभाव नहीं है । प्रथम अंक में अत्यधिक लंबी प्रस्तावना का मिथोजन किया गया है । तत्पश्थात्‌ राजा दशरथ एवं बामदेव रंगमंत्र पर प्रवेश करते हैं। कंचुकी द्वारा उन्हें महर्षि बिध्वामित्र के आगमन की सूचना प्राप्त होती है तथा महरथि उनसे राम को यज्ञ-विध्वंस करने वाले राक्षसो का संहार करने के लिए माँगते है। राजा प्रथमतः हिचकिचाते हैं, किन्तु अन्ततः राम-लक्ष्मण को उनके साथ विदा कर देते है। द्वितीय अंक में शुन:शेष एवं पशुमेढू लामक दो शिष्यों द्वारा बाली, रावण, राक्षस तथा जाम्बवन्त के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त होती है। तदनन्तर राम-लक्ष्मण का मंच पर प्रवेश होता है और ताड़का के आगमन की सूचना प्राप्त होती है । राम ताड़का को सख्ती जानकर सारने में संकोच करते हैं, पर महाँष घिश्वामित्र का उपदेश ग्रहण कर उसका वध कर डालते है। इसी अंक में कवि ने सुर्यास्त का अतिविस्तृत ब्णन किया है। ताडकावध के पहचातु राम द्वारा रात्रि का वर्णन कराया गया हैं जो नाटकीय हृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखता । तदनन्तर विश्वामित्र मिथिला जाने का प्रस्ताव करते हैं । तृतीय अंक के विष्कम्भक में कंचुकी द्वारा यह सुचना प्राप्त होती है कि रावण ने सीता के साथ विवाह करने का प्रस्ताव भेजा है । इसी बीच जनकपुर में रामचन्द्र का आगमन होता है और राजा जनक मुनि के साथ उनका स्वागत करते हैं। राजा जनक यह शर्ते रखते हैं कि जो शिवजी का धनुष चढ़ा देगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा । इस पर शोप्कल ( रावण का दूत ) अपना अपमान समझता है और रावण की प्रशंसा करता है, पर रामचन्द्र उसका उत्तर देते हैं । रामचन्द्र धनुष तोड़ डालते हैं और सीना के साथ उनका विवाह होता है। दोष्कल राम से बदला लेने की घोषणा कर उन्हें चेतावनी देकर चला जाता है और दशरथ के अन्य पुत्रों का भी विवाह राजा जनक के यहाँ सम्पन्न होता है। चतुर्थ अंक में राम से बदला चुकाने के लिए चिन्तित रावण का मंत्री मल्यवानू विचारमग्न अवस्था में प्रदर्शित किया जाता है । तत्झण वहाँ शुषंणखा आती है और माल्यवान्‌ उसे मंथरा का छदूमवेद धारण कराकर केंकेयी से राम के वनवास की योजना बनवा देता है। वह परशुराम को भी प्रभावित कर राम से युद्ध करने के लिए मिथिला भेज देता है तथा आबेश मे आकर परशुराम राम से युद्ध करते है और अन्तत: पराजित होकर चले जाते हैं । राजा दशरथ राम को अभिषेक देना चाहते है, पर केकेयी दो वरदान माँगकर राजा की आशा पर पानी फेर देती है और वे मूच्छित हो जाते है । पंचम अंक के विष्कम्भक मे जाम्बवन्त एवं श्रमणा के वार्तालाप से विदित होता है कि राम वन चले गए हूँ और वहाँ उन्होंने कई राक्षसों का संहार किया है। इसी अंक मे संन्यासी के बेब मे आये हुए रावण को जाम्बवन्त पहचान लेता हैं जो सीता-हरण के लिए आया था । इसी बीच जटायु वहाँ अकर रावण एवं मारी की योजना को जाम्बवन्त से कहता है । जाम्बबन्त यह बात जाकर सुप्रीव को बताता है और रावण जटायु के प्रतिरोध करने पर भी सीता का हरण कर लेता है ।




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