1. श्री व्यवहार सूत्रम् 2. श्री बृहत्कल्प सूत्रम् | 1. shree Vyavahar Sutram 2. Shree Brihatkalp Sutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
538
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). सत्रस,
८०-१९,
१०७०-१९
१५-१६
१७
१८
१९
२०
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२३
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विषयः 'पृष्ठसं.
॥ अथ पष्टोदेशकः ॥
भिक्षो: स्वजनमातापित्रादिगृहे गमनेच्छायां तद्विधिः । कं १४६
भिक्षोरत्पश्रताल्पागमस्य एकाकिनः स्वजनादियृहे गमननिषेषः |. १४०७
वहुश्र॒तवह्वागमेन साथ तन्न गमनानुज्ञा । १४७
मिक्षोस्तत्र भिलित्व (मसूर) दाह्लिं-तन्दुलोदकयो मेष्ये पूर्वायुक्त--
पश्चादायुक्तभेदमाश्रित्य कल्प्याकल्प्यविषिः | १४८
पूर्वायुक्तभिलि्विंसपप्रहणा5नुज्ञा । ह १४८
पूर्वायुक्तयोईयोरपि ग्रहणेडनुज्ञा । ; है
पश्चादायुक्तयोईयोरपि ग्रहणे निषेषः । ः १४०
पूर्वायुक्तस्य ग्रहणानुज्ञा, पश्चादायुक्तस्य ग्रहणनिषेष ॒इति. सूत्रदयम् | १४९
आचार्योपाध्यायस्य स्वगणे पस्चातिशेषग्रदरीकाणि
पञ्च सूत्राणि। -_. १४९-१५२
गणावच्छेदकस्यातिशेषद््यप्रदर्शक सूत्रहयम् । ... १५२
प्रामादिषु एकवर्गडैकद्वारिकनिष्कमणप्रवेशवसतौ बहू
नामइृतश्रतानामेकत्र वासावासविधोौ ग्रायश्चित्ता-
प्रायश्चित्तप्रकरणम् | १५३-१५४
एवं ग्रामादिषु अनेकवगडा-द्वार-निष्क्रमणप्रवेशकसतों ._
तेषामेकत्र वासावासविधो प्रायश्चित्ताप्रायश्चित्तप्रकरणस् । १५५
भिक्षेरेकाकिनो, ग्रामादो पूर्वप्रदर्शितवसतौ बहुश्र॒तवह्य-
गमस्यापि वासनिषेषः । १५६
प्रामादी एकवगडा-दवार-निष्कमणप्रवेश-वसतौ बह्दायमवहुअ॒ुतत्य
द्विकाल मिक्षुभाव॑सावघं परिपाक्ष्यत एकाक्रितो भिक्षोवासानुज्ञा।। १०७
बहुल्लीपुरुषमैथुनसेवनस्थाने, श्रमणनिर््रन्थस्य, वासे- हस्तकर्म, फ
प्रतिसेवनग्राप्त प्रायश्चित्तम् | ) ०१५८
एवं पूर्वोक्तस्थानवासे श्रमणनिग्रन्थस्य मैंथुनसेवनप्राप॑ प्रायश्चित्तम | - १५९
निम्नेन्थनिम्रन्थीनामन्यगणागतक्षताचारादिविशिष्टनिर्रन्थ्या
पापस्थानस्था55छोचनाद्दिकमत्तरेणो पस्थाप्रनादिनिषेष: ।.. १ ५:९-- १६०
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