वैज्ञानिकों का बचपन | Vaigyanikon Ka Bachapan

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Vaigyanikon Ka Bachapan by शुकदेव प्रसाद - Shukdev Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शैलीलियो गैलिलाई (1564-11 642) विश्व के इतिहास में वर्ष 1564 का बड़ा महत्त्व है। इस वर्ष दो महान्‌ विभूतियाँ संसार में आई--शेक्सपियर और गैलीलियो गैलिलाई | एक साहित्य के क्षेत्र का दिग्गज और दूसरा विज्ञान का महारथी । गैलीलियो ने तो उस समय धर्म एवं अंधविश्वासों में डूबे समाज को नई दिशा दी, मगर उसके वैज्ञानिक विचारों का जमकर विरोध ही हुआ । तब यह बात प्रचलित थी कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है | गैलीलियो ने इस बात का खंडन किया और कहा कि पृथ्वी नहीं बल्कि सूर्य ब्रह्मांड का केंद्र है और पृथ्वी तथा अन्य ग्रह उसके चारों ओर घूमते हैं | यह बात बाइबिल के खिलाफ थी । अतः पादरी इसको कैसे सहन करते । गैलीलियो पर आरोप लगाया गया और कचहरी में अपनी बात वापस लेने को मजबूर किया गया | गैलीलियो तब बूढ़े हो चले थे और कमजोर भी । अतः मौत के डर से उन्होंने बुझे मन से अपनी बात को झूठी कहना स्वीकार कर लिया । उन्होंने पोप से माफी माँगी | लेकिन जब पोप के सामने से गैलीलियो हटे तो वह स्वयं बुदबुदा उठे --- अर्थ इज मूविंग नाऊ टू ... (पृथ्वी तो अब भी घूम रही है) । आखिर थे तो सत्य के ही अन्वेषक !




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