नीड़ | Need
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“फिर भूठ ! चल भाग जा नोचे, वरना झाज सुबह-सुबह तेरी खाल
छिल जाएगी । हकीम के बेटे से मैं क््रपने-प्राप निपट लूंगा'“औौर विता
पाखाने वाले डिब्दे में पानी उंडेलने लगे थे । फिर भीतर धुसते हुए बोसे,
“जाबर नहा ले “स्कूल को देर हो जाएगी।!
नीचे उतरफर मोहन नहाने-धोने में लग गया था । उम्का मुंह फुला
हुप्रा था। मा ने कुछ-बुछ वात सुन ली थी, पर वाप-बैटे के बीच पाम-
साहू पभ्राना उसे पसंद नहीं था। ने ही वह किसीकी तरफदारी करती थी ।
पति का स्वभाव वह जानती थी ।
उस दिन मोहन स्कूल के लिए जितनी जल्दी तैयार हुमा था, उतनी
जल्दी तैयार हो सकने की बढ कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था ।
उसका मन कह रहा था, वह पिता के नीचे उतरकर पाने से पहने ही
स्पूल चला जाए । लेकिन बहुत जल्दी तैयार होते के बावजूद वह मां की
दी हुई दह्दी-रोटी सा रहा था, जब पिता प्रा गए थे। यह तो प्रच्छा हुप्रा
कि एक थार धूरकर देखने के प्रलावा पिता ने दुछ नहीं कहा। वह
एक नजर ही मोहन के गये में रोटी फो धटका देसे के लिए काफी थी।
पिता दातुन करने लगे भौर सों-पों करके गला साफ़ करने लगे, पर
मोहन से प्रौर नहीं साथा गया ।
मा ने स्पूल के लिए नमकीन पराठा चीथड़ें मे बाधकर दिया।
मोहन ने उप्ते जल्दी से बस्ते में रफ्ता शौर स्कूल के लिए चल पडा ।
भागन में नल के पास बेठे बाऊनी नहाने लगे थे। भौर साय ही
अपना नियमित फृष्ण-ह्तोश्र सायन भी करने लगे थे। मोहन ने उतनी
औ्रोर देसे बिना ही द्वार की धोर कदम बढ़ा दिए कि पीछे से प्रावाज
भ्राई थी, “हरामजादे, झ्द दुदारा गलती नहीं होनी चाहिए । तुमने सच
चील दिया, इसलिए बच गये, वरना दो कानो के बीच सिर कर देता'**'”
प्रोर द्वार के बाहर होते हुए मोहन ने बाऊजी बाय तकिया कलाम
सुना पा, “सच्चे इनसान के लिए दुनिया में नो प्रॉब्लम
*“*घथब बिस्तर पर सेटे-्लेंट उसे ऐसा लग रहा था जैसे बाऊजी ने एड
थार फिर उसबा कान उम्ेठ दिया हो झौर उसका पूरा मिर दई से
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