पटरानी | Patarani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहले-पहल मुझे कैसा डर लगा था, जानते हो ? *
मैंने पुछा, 'कैसा डर लगा था ?!
मेम भाभी ने बताया, 'यह देश मैंते पहले कभी देखा तो था नहीं;
इसलिए विस्सेंट स्तव्रायर में सबने मुझे टराना सुर किया कि इण्डियन
लोग बहुत गनन््दे होने हैं। चार-पाच शादियां करने हैं। रास्तों में हो मेट-
चीने आदि घूमते रहते हैं! ओर बहू को सब नौकर-्चाकर की तरह
सदाते हैं।'
फिर बोली, ' बअलक ने भुझे सब कुछ समझा-दुझा दिया था, पर मे रा
डर कम नहीं हुआ। फिर जहाड में एक बगाली बहू से मैरी मुलाकात
हुई। उसने मुझे सिसाया कि किस तरह प्रणाम करना चाहिए। विस तरह
सास का कहना मानता पड़ता है। सव कुछ सिखाकर वह बोली, बहा
किसीके सामने सिगरेट नहीं पीना। लोग बुराई करेंगे ।
“फिर उसी थहू मे बताया, सास की चरण-धूलि लेकर माय से हाथ
छुआना । सास-ससुर के सामने पत्ति से बात मत करना, और रात को जब
सब खा-पी चुके, तब कमरे में सोने जाना ।*
में भाभी से अपनी प्व्ती-लम्वी अंगरुलियों की ओर देखते हुए कहा,
'उमीसे तो मैंने हाय से घाना सोधा। उसीसे दाल-भाव और मछली
राधना सीया। बहुत ही अच्छी लड़की थी भई, सब कुछ सिसा दिया
मुझे ।!
फिर माथे पर सिदुर की एक विन्दी सगाकर बोली, “पर यहां भाकर
ती मैंवे देसा कि सब झ्रुछ उससे उल्टा निकला ।*
“उल्टा कैसे ?!
और नही तो क्या ? पैर छूकर प्रणाम करने जाओ, वो सभी पाय
पोछे यीच लैते है। छू देती हूं, वो सब अपने कपड़े थोते हैं। मेरे हाथ का
बनाया खाना कोई नही खाता। घर में मेरे लिए रसोइया नहीं रहना
चाहता । कोई भी हिन्दू नौकर मेरे घर में काम करने को तैयार नही ।'
मेम भाभी ने फिर कहा, 'इसी लिए जिस दिन रसोइया भाग जाता है,
पटरानी ३५
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