हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास | Hindi Sahitya ka Vivechnatmak Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.44 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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की धूम मच गई, सम्प्रदायों का दौरदौरा हो गया । सम्प्रदायों के
चाहुल्य का वर्णन आचन्दगिरि के शददों में इस मकार हू
केचिच्वन्द्रपराः परे कुजपराः केचिच मन्दाश्रिता: ।
केंचित कालपराः परे पिदृपरा: केचिच॒ नागेशयाः ।
केचिसाचयपरारच सिद्धिनिचयं सेवान्ति केचिद्धिया ॥
केंचिद् गन्धवसाध्यादीन् भूतवेताद्गा: परे |
एवं नानाप्रभदानां नूणां बूतियथेाप्सिता ॥
केचित् स्ववृत्ति वेदाथ: प्रतिपादां समूचिरे ।
केंचिद्धर्मेरियं सुरक्रिरिति जल्प॑ समास्थिता: ॥
द्रन्योन्यमरसरयर्ताः पररपरजये पिया: 1
निजेच्छाकृत्तिसड्रेपु घारयन्ति रुपन्विता: ॥
शझर के भ्रद्देतलवाद ने कुछ काल के लिये संप्रदायां को दवा
दिया, किन्तु शट्र का प्रभाव स्थायी न रहा | नवम शताद्दी में संप्रदायों
ने फिर बल पकड़ा श्रीर घार्मिक वितरडाबाद की धूम रही । समाज का
शिच्ित समुदाय नास्तिक होगया ्रीर श्शिक्षितिवर्ग अंधविश्वास से
फंस यया । रामानन्द तथा कबीर दि के श्रभ्युद्य तक सक्षेप में यद्दी
दशा यनी रही ।
बारहवीं सदी में श्राने वाला श्रल इृद्रिसी 21 पाएं के लेखों
की पुष्टि करता हुभ्ा भारतीयों के साहित्य, ध्याचार, तथा दर्शनशास्त्र की
अशसा करता हू । परन्तु कार दशना स साम्राउया को रचा नहीं होती ।
दशन के साथ कृपाण का होना श्रावश्यक है । भारत ने सदाकाल से
'सत्य शान्त शिवम की पूजा करते हुए दर्शन को अपनाया घोर तलवार
का वहिप्कार किया । परन्तु श्राततायी जगव् ने उपनिपद् के इस मन्त्र
में क्रियास्सक 'प्रास्था कभी नहीं रक्खी | उसने बार बार शान्ति को
व्स पहुचाइ हूं । फलत:* शान्त भारत को चिदाशियों के सम्मुख सिर
हिन्दु्सों की दशनप्रियता दर उसके हानि लाभ पर विचार करते
हुए प्रा० इश्वरीप्रसाद लिखते हैं।--
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