ईश्वरीय ज्ञान का साप्ताहिक अध्ययन क्रम | Eshwariya Giyan Ka Saptahik Addhayan Kram

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : ईश्वरीय ज्ञान का साप्ताहिक अध्ययन क्रम  - Eshwariya Giyan Ka Saptahik Addhayan Kram

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगदीश चन्द्र - Jagdish Chandra

Add Infomation AboutJagdish Chandra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
देश और ममाज की सभी समस्याओं का हल पवित्रता है २५ है माता-पिता द्वारा मेहनत करने के बाद भी निठल्ले रहते हैं; कोई तो उच्च गायक प्रसिद्ध हो जाता है, कई शास्त्र कण्ठ कर लेते हैं और कई अनपढ़ ही रह जाते हैं परन्तु वे कशल व्यापारी सिद्ध होते हैं। स्पष्ट है कि जिसने पूर्व-जन्म में जिस कार्य का अभ्यास किया होता है, उसे उसकी सहायता इस जन्म में भी मिलती है। इसके अलावा, मनुष्य में जो मुक्ति की या सुख-शान्ति की इच्छा रहती है या उसे मौत से जो डर लगता है, उससे भी सिद्ध होता है कि आत्मा ने पहले किसी जन्म में सम्पूर्ण सुख-शान्ति की अवस्था भोगी है; वह पहले मृत्यु का भी अनुभव कर चुकी है और कि वह अनेक बार द:ख भोगने के बाद अब मक्ति चाहती है। इन सभी बातों से पनर्जन्म का होना सिद्ध है। शिश पैदा होने के बाद बिना ट्रेनिंग लिए ही माता से दध पीने लगता है, उससे भी स्पष्ट है कि वह कई जन्म ले चका है और यह उसे पूर्वज्ञात है अथवा इसका उसे पववाभ्यास है। जिज्ञास-बहन जी, हम आदि सनातन धर्म के लोग तो पनर्जन्म मानते हैं परन्त आज कछ धर्मो के लोगों का यह मन्तव्य है कि एक जन्म लेने के बाद मनष्य दसरा जन्म नहीं लेता बल्कि वह कब्र दाखिल' ही रहता है। जब कयामत अथवा महाविनाश का समय आता है तब परमात्मा आकर उसे कन्न से निकालते हैं और उसे कर्मो का फल देकर वापस रूहों की दनिया में ले जाते हैं। बहमाकुमारी -जी हाँ, कई लोग ऐसा मानते हैं,परन्तु वास्तव में सत्यता इसरो भिन्‍न है। बात यह है कि एक बार इस मनुष्य-सृष्टि में जन्म लेने के बाद आत्गा कल्प के अन्त तक अर्थात्‌ इस सृष्टि का महाविनाश होने तक पुनर्जन्म लेती रहती है। कल्प के अन्त में वह बिल्कल अज्ञानता की हालत में होती है। इसे ही महावरे में कब्र दाखिल होना” कहा गया है। तब परमपिता परमात्मा इस सप्टि में अवतरित होकर सभी को ईश्वरीय ज्ञान देकर 'कन्न से निकालते हैं' अर्थात्‌ अज्ञान-निद्रा रो जगाते हैं। परमात्मा उन्हें वापस परमधाम ले जाते हैं और जो पविन्न नहीं बनतीं उनके कर्मो का लेखा चकाकर अर्थात्‌ उन्हें फल देकर भी वे परमधाम ले जाते परन्तु आज 'कन्न दाखिल होने का वास्तविक अर्थ न जानने के कारण ही लोग मानते हैं कि आत्मा एक ही जन्म लेती है। आप किंचित सोचिए कि यदि मनुष्यात्माएँ पुनर्जन्म न लेती तो संसार में जनसंख्या क्‍यों बढ़ती जाती? जन-संख्या के दिनोंदिन बढ़ने रो ही रपष्ट है फि पहली ९ आत्माएँ पुनर्जन्म लेती आ रही हैं और अन्य आत्माएँ भी परमधाम रो उतर र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now