मृच्छकटिकम् | Mrichchhakatikam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धूफिरा ते ३ फम्मानित द्वाह्मत है जो दरिद है । वसन्तपेता उम्जयिनी की एक गनिका है. जो झूपवती एवं शुदवदी है; डिन्तु धन को”मभिलापा नहीं स्खठी तया चाददत से प्रेम करतो है 4 ंशेप में कपावक इस प्रकार है'- अड्ु १--धाददत्त के मित्र जुर्गेदृद्ध का दिया हुआ शाल लेकर विदृषक (मैत्रेंस) आता है तभी चाइइत्त विदूषक से चोराहे पर देवियों को दलि देने के लिये जाने को कहता है किन्तु विदूपक आनाहादी करता है गौर चारदत्त दरिद्वता के दोषों का स्मरण करते समता है । फिर विदृप्रक रदनिका (सेविका) को साथ लेकर जाने के लिये यार होता है । इसी समय राजमार्ग में विट शझार आदि के द्वारा पीखा की जाती दृ£ वकन्ठस्ेठा चाददत के घर के सूमीउ जा जाती हैं और घर में प्रवेग करती है। छद विदृपक और रदनिका बाहर जाते हैं तो शकार रदनिका को वसन्तस्ेता जानकर वर्ड लेता है और बिट के कहते से छोड़ता है ! वसन्तपतेना किसी भावी लाभ को आग से अपने आभूषण भाददत के घर रख देती है तथा चाददत्त उसे घर पहुँचा झाठा है। अड्ू २--वहनत्ततेना मपती बेटो मदनिका के साथ चाददत सम्बन्धी वार्ठों जाप कर रही है। इसी समय सवाहरु आता है। जुआरी ओर दूतकरों का मुश्िया (मापुर) उसझा पीछा करते हुए बते हैं । दसन्तसेता कपता स्वर्णादूषण देकर संवाहरू को धुझ़वी है ! वाहक दिरक्त होकर बोड-मिश्नु वतन जाता है । वहन्ठसेना का उन्मत्त हाएी मार्य में उम्रे परुड़ सेठा है ठया बसन्तसेता का सेवक कर्णपूरक उसे हाथी से छुड्ाता है। फरतः, चाददत रु्भपूरक को पुरस्कार स्वरूपअपना दुशाला देता है । झद्ु ३--घारदत और मैभेय संगीत घुतरर बाते हैं / वे घर में माकर सो शात्े हैं । इधर मइनिका को दासठा से मुक्त कराने के लिये शविलक चारुदत्त के घर सेंध तगाठा है और वसन्तसेना के आमूदणों को चुराकरू से जाता है। झड़ ४--ह्राठ:शाल सविलक बाभूषध लेकर मदनिक्षा के पाष्ठ आठा है । ये शाधूपत चारदइत्त के धर से चराये गये हैं, यह जानकर मदतिका दुःखी होठी है. और उस आमूषदों को निवुशतापृरेक बसन्दद्धेता को दिला देदो है 1 दसतसेना मदतिका को सेवामुत्तः कर देतो है। उधर चादइत को पतिद्रत्धा हत्री घृठा मपती रत्तावत्ती अाइदत को दे देती है बोर चाददत्त उसे विदृषक के द्वारा दसत्तपेता के घर भेज देवा है । झडु ५--दरुन्तठेना दिट तथा चेटी के छाप चारुजस के प्रति अभिपरण $१$रदी है ९ यह दुदित है; यतान्धररर, मेघ यजंना; दर्पा की झड़ी मौर विदुत्‌ की टकड़रु । घाइदत उसकी प्रठोज्ना में है 1 दह भोदी हुई वहां पहुँचतोी है मोर राजि झुशिधाम करती है। पइ्रत्पेश अद्टू री डिल्ृद कपा उस मदु शी टिपमियों के आारस्म में दौ दरहै।




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