विषय विष नहीं | Vishay Vish Nahin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कैदव बाबू ने अपने दुवंल हाथों से उन्हें ठेलक्र मौचे गिरा दिया। नौबे मिस्ते हो बोतलें टूटकर चूर-चूर हो गईं 1 देशव बाबू ने हांफदे हुए कहा, “जाएं, सब टूट-फूटकर घूर-प्र हो जाए, अब मुझे दवा को जरूरत नहीं, अब योने की जरूरत नहीं, गुस्े दिसी ऐो भी झटरत नहीं, मैं दिना पर-द्वार के भी मरूया तो शट़ी अच्छा, मगर किसी या चेहरा नहीं दंखघूगा यह कहरूर उन्होंने तिराशा और सवान से जड़ होरुर आयें बन्द रर मीं और पोठ के बल सेटे-सेटे अपने-आपयो शात करने छी कोशिश करने सगे । केशव बाबू के घर मे मैं एक ऐसा ब्यतित था जिसका इन सीमो व्यक्तितयों से भी कोई संबंध न था। एकाएक यह परिस्थिति मुझे मसहनी य-जै सी पगने “लगी । “चलू, फेशव बाबू ।” मैंने कहा । मानों, केशव बाबू को मेरी मौजूदगों का अहसास हुआ हो। मेरी बातें सुनकर उन्होंने आयें खोली 1 “मेरी यह हातत तो आप अपनी आयो से देय रहे हैं, इसके घाद अगर अप कभी आएंगे तो हो सकता है. पता घते कि मैं एस दुनिया में नही रहा। अनी मैं छिदत्तर साल का हू, फिर भी भगवान मुझे इस दुनिया से बयों नहीं उठा नेता है !” केशव बाबू की आंदें छतछला आईं 1 मैं अब वहां सका नहीं। सोढ़ियां उतरने लगा। तारक राष्ता दियाता दुआ मुझे सदर फाटक तक पहुंचा गया । मैं सड़क पर पटुंचूँ कि इसके परे ही तारक ने कहा, फिर आइएगा मालिक । मेरे मालिक के पास कोई नहीं आता, आपके आने रो मालिक को चोड़ी धांति मिवती है ।/ तारक की बातें सुनकर मैं अवाक्‌ हो गया। मैंने फहा, मैं आऊंगा, मगर तुम ? तुम वो अब रहोगे नही । धुम्हारो लौकरी आज छूट गई न?” तारक हूंग दिया। चह हंसी आतगतृप्ति की हूंढी थी। “मैं ? आप मेरे बारे में कह रहे हैं ? इसके पदते भी मेरी तो - चुकी है। इस मकान में मैं न रहूगा शो बसे घढेया ?” ई ः के ड्श्‌




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