भगवती सूत्र | 1927 Bhagwati Sutra, Vol-i

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भगवती सूत्र - 1927 Bhagwati Sutra, Vol-i

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पंडित श्री घेवरचंद जी बांठिया -pandit shri ghevarchand ji banthiya

Add Infomation Aboutpandit shri ghevarchand ji banthiya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भगवती सुत्न-तमस्कार मत्र ३ उ्चःक कैट मे वस्‍म2 कम २००२ मै ०> भर मैस्‍४ 2: अेरतै२ मेले वर पर मैरपरघ॑रसैरब॑न्‍ेंस्‍स्‍पैम मे स्‍ मै धै२4०में> पर घेर े०४२० थे धं२ ह*धै घस्‍०४० ४२९२2 ४2 11] व आचार्य <-सूत्र और अर्थ के ज्ञाता, गच्छ के नायक, गच्छ के लिए' आ्राधारभूत, उत्तम लक्षणों वाले, गण के ताप से विमुक्त अर्थात्‌ गण की सारण वारण और धारणरूप व्यवस्था की चिन्ता से न घबराने वाछे, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तप आचार और वीर्याचार, इन पांच प्रकार के ग्राचार का दृढ़ता से पालन करने वाले और पालन कराने वाले आचाये होते हैं। ऐसे श्राचाय महाराज को नमस्कार हो | उपाध्याय 1-जिनके समीप रह कर जैनाग्रमों का अध्ययन किया जाय, जिनकी सहायता से जैनागमों का स्मरण किया जाय, जिनकी सेवा मे रहने से श्रुतज्ञाव का लाभ हो, सदगुद परम्परा से प्राप्त जिन वचनों का अध्ययन करवा कर जो भव्य जीवों को विनय में प्रवृत्ति कराते हैं, वे उपाध्याय कहलाते हैं। ऐसे उपाध्यायजी महाराज को नमस्कार हो । साधु [-ज्ञान, दर्शत और चारित्र के द्वारा मोक्ष को साधने वाले तथा सब प्राणियों में संगभाव रखने वाले साधु-कहलाते है। उन सब साधुजी महाराज को तमस्कार हो । यहाँ सर्व” शब्द से सामायिक आदि पोँच चारित्रों में से किसी भी खारित्र का पालन करने वाले, भरतादि किसी भी क्षेत्र में विद्यमान, तिर्च्छा लोकादि किसी भी लोक में विद्यमान औ्रौर स्त्रीलियादि तथा स्वलिगादि किसी भी लिंग में विद्यमान, भाव चारित्र सम्पन्न, छठे गुणस्थान से छेकर चौदहवें गृणस्थानवर्ती सभी साधु साध्वियों का ग्रहण किया गया है, जो जिनाज्ञा अनुसार ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना करने वाले हैं। ५» मो लोए सब्वसाहुणं-मे जो 'सब्ब-सर्वे' शब्द ग्रहण किया गया है वह पहले के चार पदों के साथ अर्थात्‌ ग्ररिहन्त, सिद्ध, श्राचाय और उपाध्याय, इन चारों पदो के साथ भी लगा छेना चाहिए । # सुतत्यथविऊ लक्खणजुत्तो, गच्छस्स सेडिभूओ य। ४ २ गणतत्तिविष्पमुवको, अत्यं॑ बाएड आयरिओ ॥ पंचविह आयारं आयरमाणा तहा पभ्मासंता । आयारं दंसंता, आयरिया तेण चुच्चंति ॥ 1 बारसंगो जिणवल्ाओ, सच्भाओ कहिओ बहै।.“#- ं दे उबइसंति जम्हा, उवज्भाया तेण बुच्च॑ति ॥ ; निव्वाणसाहए जोए, जम्हा साहेँंति साहुणो । - - - समा य-सब्वभूएसु, तम्हा ते भाव साहुणो ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now