साम्यवाद | Samyavad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
510
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९ प्राचीन साम्यवाद ।
“सकते थे। जीवनकी सबसे बढ़कर झोमा विद्यासे ही होती है। विद्या
मार्नो जीवनका जीवन है| छेकिन झद्दोंकों वह विद्या प्राप्त करनेका
भी कोई अधिकार नहीं था | सारी विद्याएँ शाल्लोंमें बन्द थीं और
उन छोगोंको आँखोंसे शात्ष देखने तकका अधिकार नहीं था | सवय॑
उनकी पारछोकिक सद्गति भी ब्रह्मणोंके ही हाथमें थी । उन दिनों
माना जाता था कि ब्राह्मण जो कुछ कह दे यदि वही काम किया
जाय तब तो मनुष्यकी सद्गति होती है और नहीं तो नहीं होती।
ब्राक्षण जो कुछ कराना चाहते थे वही काम्र परछोकको सुधारनेबाला
माना जाता था और उसके विपरीत जो कुछ होता था बह सब पर-
लछोककों बिगाइनेवांछा माना जाता था | त्राह्मणकों दान देनेसे ही
मनुष्यका परछोक सुघरता था | लेकिन शूद्व यहेँतिक निक्रष्ट समझे
जाते थे कि जो ब्राह्मण झूट्कका दान ग्रहण करता था वह ब्राह्मण ही
पतित हो जाता था । श॒द्दोंकी सद्गति केवल त्राक्षणोंकी सेवा करनेसे'
होती थी । कोई यह नहीं सोचता था कि शद्ग भी मनुष्य ही हैं और
ब्राक्षण भी मनुष्य ही | प्राचीन युरोपमें केदियों और शासकॉमें जो
“विपमता होती थी वह भी इतनी भयानक नहीं थी। यह दुर्दशा,
यह सामाजिक विपमता अब भी बहुत कुछ बनी हुई है। और
इर्साको देखनेसे प्राचीन भीपण विषमताका बहुत कुछ अनुमान किया
जा सकता है।
“इसी भीपण वर्णमेदकी विपमताके कारण भारतवर्पषकी अवनति
. होने ठगी | संसारकी समस्त अवनतियोंका मूल ज्ञानकी उन्नति है ।
पशुओंकी तरह अपनी इन्द्रियोंकी तृत्ति कर केनेके अतिरिक्त संसारमें
आप और कोई ऐसां एक भी सुख नहीं बतछा सकते जिसका मूछ
शोनकी उन्नति न हो। छेकिन इस वर्णसम्बन्धी विपमताके कारण
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