भारतीय संस्कृति | Bharatiya Sanskriti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फातदा८ के ६1८: शर्ट ज्ञाद्मण घन गये । इदनाकुवंदाज प्रसिद्ध झतिय थे ही । इस प्रकार यहां चारों मर्णो की उत्पत्ति को भी मजु से सम्बन्धित करने का श्रयल्न किया गया है । शर्याति के तीन पंशज दिये थये हैं-आनर्ते, रेवत,' थ ' कठुद्धि 1 ऋग्वेद के भव्यद्टाओं में “शार्यातो मानव” नाम का एक क्रपि है । इस उेय से पता चलता है कि इस वंश में मव्झदष्टा वैदिक ऋषि भी उन हुए थे। इस घंझ के इतिदास पर आउोचनात्मक दृष्टि डालनेसे माद्मम होता हैं कि अस्त शी प्रालीनकाल से चार्याति-दंश पश्चिमी भारत में राज्य करता था घ इसके अहुतसे राजाओं में से तीन, चार ही नामः अवशेष रहे, क्योंकि वाकी के शजा कदाचित, समग्रदेश की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण न दोंगे । दिए के भाभाग, बंधन भादि ३८ चंगाजों का उ़ेख है” । इस वंश का चौदहवां राजा 'मदत्त' था, जिसे चक्रवर्ती कहा गया है, २७ था विशाल या, जिंसने बिशाला ( बिहार में वेशाठी ) नगरी की स्थापना की व ३५ या राजा सोमदत्त था, जिसने सी अखवमेध-यश्ञ किये । इन सब को “'वेशाठिक राजा” कह्दा गया है। इन का राज्य पूर्वी भारत में बहुत दिनों तक रद्दा । इधवाकुर्घदा--यदद वंश भारत के प्राचीन इतिहास में अयम्त ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि दरिधन्द्र, राम आदि नरपुहनों ने, जिनके कारण छाथ भी दिन्दूज़ाति गौरव से अपना छिर ऊँचा उठा सकी है, इसी वंश में जन्म छिया या । यदद बंध भारतीय राजवंझों में प्राचीनतम प्रतीत हीता है । मद्दाभारत-पाठ तक इस बंश के लगभग ९८ राजाओं का उठेख है । धथिप्ठ, इस चंदा के कुलगुर थे । मददाभारत-युद्ध के पधात मी इस बंध के शजा राज्य करते रहे । निमिर्वश--इश्वाकु-पंश फी एक शाखा और थी, जिसका प्रारम्भ इश्वाकु के द्वितीय पुन्न निमि से होता दै'। इसी वंश में रामदाशरथि की पत्ती सीता फे पिता सीरप्वज जनक ने जन्म लिया था। इस पंश के राजाओं वो *ात्मविद्यारत”** कद्दा गया है, जो कि उपयुक्त ही है. 1 चन्द्रचंद्ा--पुराणों ने चन्द्र को इस वंश का संस्थापक माना है । इस सं फा प्रारम्भ मनु की पुन्नी इसी से होता है, क्योंकि इला का पुत्र प्ुरूरसू ऐल ही इस बंद दा स्वेप्रपम ऐतिहासिक राजा था; जिसका उेख करवेद में सी आता है** । पार्जिटर का कयन है कि यही बंध जार्यनवंश




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