अजेय राष्ट्रभावना | Ajey Rashtr Bhavana

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Ajey Rashtr Bhavana by भगवतशरण उपाध्याय - Bhagwatsharan Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमासय हो देवमूमि पर दासबों का ताप्डब श् परे प्रदकार जो इक लेगा, सुमे घिनौनां बना देगा झौर तू प्रपनी ह्डी उलालत पर साकता रह जायगा। भ्ौर ऐसा होकर रहेगा दान से तू, भमिशप्त निनय, कि प्राज जो तरे हमगुजर हूं, तुमसे मानू मिलाये नस रहे हैं, य ही एग दिन तेरी छूस मामेंग्रे, तेरा मुद्द देखने से परहेज बरेंग,तैरे साय से दूर मार्गेंगे, पौर जिस्ता-चिसलाकर ऐलान करेंग कि निनये नृप्ट हो गया, धूल में पष्टा है. जर्मीदोद्ध दो चुका है। फिर कौन तुम पर प्रासू महायंगा ?े देख निनबे कान खोलकर सुन से-तेरे वाधिम्दों में बस प्ौरतें रह जायेंगी, मद तलबारों के घाट उतर जायेंगे, देरेपेर के द्वार दोनो फाटक दो भोर दुएम्नों फे सामने भ्रपने-प्राप खुल जायेंगे, श्राग गौ सपर्टे सरे धहरपनाह बी तुमे घरने वाली ऊंची दीवारों को चाट जायेगी” भसुर्रों के राजा, पू भी सुन ले--तेरे गांवों के स्ियार मेड़ों के चरवाहे सदा के सिए सो जामंगे सरे प्रभिजात भमोर घृप्त म मिल जायगे, तेरी कौम टुकडें-दुकड होकर, सर्याद होकर, पहाड़ों पर विक्तर जायगी भर कोई उसका पुरसाद्वास न होगा, कोई नामसेघा न बच्ेगा फिर उनको हौककर काई इकद्ठा न कर पायेगा प्लौर तव निनवे, तेरे घाथ का कोई मरहम भी न होगा, झोर तरा घाव गहरा है भोर ऐसा गहरा मितेरे दर्द से किसी मी पभ्राह ने निकसेगी, सुनने वास ताली बजा उठेंगे, कारण हि जमीत पर मज्ला ऐसा बौत है जिस पर तरा कहर न वरसा हा? ग्रड़ो बाल पभाज पैं पिकिग से कह रहा हू जो सिनवे का, खरजा में प्रसाघारण वारिस है। झौर मैं नाहीम नहीं है,




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