न्यायप्रकाश | Nyay Prakash

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Nyay Prakash by गंगानाथ झा - Ganganath Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्याय प्रकाश -। २१ छाश झजुमान का सी-! इसी से .प्राचीनों ने इस विभाग को नहीं कद्दा है । प्राचीन नेयायिकों ने इन तीन प्रकारों को न मानकर फेचलू दो प्रकार का झनुमान ' बीत ” और “अवीत ? माना है। “ऐसी यह चीज है “ यह जिस प्रचुमान से सबूत किया जाय उसको “ थीत. कहते हैं । और “ ऐसी यह चीज नहीं है --यह जिससे सबूत किया जाय उसको 'झवीत' कहते दैं.। , अनुमान के कहने में,पांच वाक्‍्योंक्री जरुरत होती.हैं. सो कद्द . भागे हैं। जैसे- , “ पंदेत में झाग है। ,/ क्योंकि यहां घूआं देख पड़ता है ० जहां धूम्मां दे वहां भाग जरूर है जैसे रसोई धर में यहां पर धूझआं है ४ & ,.. यहां पर झाग है। इन वाक्या में ' पर्वेत--आग-धूआं रख्तोई घर--यही चार चीज़ों के नाम पाये गये । ( १] पबतं घद है जिस में आग का होना सबूत फरना दे। इसको कहा है ' पक्ष ' श्र्थाद. जिस के विपय में संदेह हों कि सबूत करनेवाली बात इस में दे या नहीं ] भाग वह चौज है जिसका होना सबूत करना दे। इस का साम दे ' साध्य ” जिस .फो झजुमान से सिद्ध या सबूत फरना है॥(३ ] धूझां चद्द चोज है जिस के द्वारा भाग का होता सबूत करते हैं। इस फा नाम है ' द्ेतु ! या 'लिंग' । (४) रसोई घर में आग झौर घूझ्ां साथ पाया जाता है इसी के दृश्ान्त रहे पर्चत में घूम के साथ भांग का रहना सबूत करते हैं। इस को सपक्त ' कहते ईँ । मथात्‌ जिस में साध्य का रहना ठीक मालूम 'है.॥ इसी तरह जिस.में साध्य फा न रहना ठीक मालूम दो उस विपक्त ' कद्दते हैं,॥ इन पा्चों अ्रवयवों में सर झोर चार पर बहुत कुछ लिंखना झावश्यक नहीं . है.। परन्तु भनुमान का मूल है देतु इस से इस का विचार आवश्यक्ष है | झव यहां पर यह विचार” किया जायगा कि हेतु था लिंग क्‍या दे, सत्‌ या अच्छा शुद्ध देतु ५ रड




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