भारत रमणी रत्न | Bharat Ramani Ratn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वघिदुला 1 द
में प्र नहीं पद निलेज्ष मपुरुण हे न स्त्री । उस स
न मित्रों का सदायता न प्रजा को छुख मिक्षता है। दस के
द्वारा न माता की छाती ढद्रा होगे न पिता का नाम जीवित
रहेगा। यह देश निकाला और यह पिपत् किसे अच्छे
खगते हैँ! खजय, तू पुरुष धन, स्त्रियों फे बख्र मत पदन !
क्या तू मुझे स्लिय। में लज्ञित करेगा $ उठ, पढ़ग द्वाथ में
ले और शपुभी का सद्दार फर !” सज्ञय ने माता के शब्द
छुने भौर घोला-- माता, इस जोक में तुमे क्या सुख मिलेगा
यादि तेरा पुप्र ससार में न इच्चा ? तथ तेरा जीवन किस
काम आधगा ? पिदुला ने उत्तर दिया-दे पुत्र, सप्ना
जीना तो बना दी है, इसे कोई शोर नहीं सफता ॥ओ
रणयूमि में मरता है दल स्त्र्म मित्नता ई 1जे। पहोँ से
भागता है, सरह का भागी यनता दे | क्षजिय जब तक युद्ध
में हडकूए अपनी चीसता और शरता का परियय नहीं दता
तथ तक मातापिया का ऋण रदता द। दे थार, तू ऐसा बकी
बन कि प्राह्मण मिक्चु तेरा आधय ऐए, तू क्यों बहिसी का
/' आध्य ले ? जे। अपन वहुबल पर घमयड़ करता हुआ खसा<
भ पिचरता दे घद लक और परलोक दोनों में यश पाता दै 1
सजय, माता गये करती द्वे यादि उस का पुत्र रिंद्द के
सामने अपनी ऑप नह समझता यह मान लिया कि सिंध
के राजा के पास सेना ब्रहत हे, कित॒ तम्दें यह भी मालृप
दो;कि अपने देश में माए शत्रु को अकेला; एक: दी क्षत्रिय
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