हर्षचरित - एक सांस्कृतिक अध्ययन | Harshacharit - Ek Sanskritik Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वासुदेवशरण अग्रवाल - Vasudeshran Agrawal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वक्तव्य
रलेषे केचन शब्दगुम्फविषये के चिद्रसे चापरै5लंकारे
कतिचित्सदर्थविषये. चान्ये.. कथावरके |
आः सवंत्र गर्भारधीरकरितारविन्ध्याटर्वाचातुरी-
संचारां कविकुम्भिकुम्भभिदुरों बाण॒स्तु पंचानन: ||
बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद् को दो-तीन वर्ष में ही जो थोड़ी-घनी सफलता मिली है,
वह इस बात का सिद्ध प्रमाण है कि साहित्य के निमित्त सरकारी संरक्षण प्राप्त होने पर,
हिंदी में मननशील मनस््वी विद्वान, हिन्दी साहित्य के अमावों की पूर्ति के लिए,, कितनी
लगन और आस्था के सांथ काम कर सकते हैं।
विहारूराज्य के शिक्षा-विभाग की छुत्नछाया में अपनी पूरी श्रांतरिक स्वतंत्रता के
साथ काम करते हुए परिषद् ने यह अनुभव किया है कि हिन्दी के विशेषश्ष और अधिकारी
विद्वानों को यदि सुअ्रवसर दिया जाय और उन्हें हिंन्दी-संसार के सबविदित प्रकाशकीय
व्यवहारों का अनुभव न होने दिया जाय तो साहित्य में ऐसे ग्रंथों डी संख्या-बृद्धि हो
सकती है, जिनसे राष्ट्रभाषा का गौरव अज्षुर्ण रहे ।
परिषद् ने ग्रंथ अथवा भाषण के चुनाव में प्रथकार अ्रथवा वक्ता की इच्छा को
ही बराघर प्रधानता:दी है। विद्वानों ने १रिष्रद् के उद्द श्यों को समऋकर, अपनी स्वतंत्र
रुचि और प्रवृत्ति के अनुसार, परिषद् को अपने श्राधुनिकतम अनुशीक्षन और अनुसंधान
का फल प्रदान करना चाहा है ओर परिषद् ने निःसंकोच उसका स्वागत और सदुपयोग
किया है। यही कारण है कि परिषद् को साहित्य के उन्नयन में हिन्दी-जगत् के सभी चोटी
के विद्वानों का हार्दिक सहयोग क्रमश: प्राप्त होता जा रहा हैं ।
परिषद् की ओर से -प्रतिवष दो-तीन विशिष्ट विद्वानों की माषणमाला का आयोजन
किया जाता है । प्रत्येक »भाषण एक सहल्न मुद्रा से सादर पुरस्क्तत होता है। भाषण के
पुस्तकाकार में छुपने पर वक्ता-लेखक को रायल्टी मी दी जाती है । जिस समय डॉ० वासुदेवशरण
अग्रवाल के महाकवि बाणभट्ट संबंधी भाषण की घोषणा की गई थी--मार्च १६५६१ में,
उस समय भाषण का शीर्षक था--महाकवि बाणभद्द और भारतीय संस्कृति! | यही शीर्षक
समय-समय पर परिषद् की विश्वप्तियों .में भी प्रकाशित होता रहा; किंतु अंथ की छुपाई जब
User Reviews
No Reviews | Add Yours...