बूंद भी लहर भी | Bund Bhi Lahar Bhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोह-चिकित्सा : एक प्रयोग १३
व्यक्त करता हुआ बोला--परधारिए, माताजी ! बड़ी कृपा की आपने, मेरी झोंपड़ी
को पावन कर दिया । जीवन भर नहीं भूल सकूंगा आपका यह अनुग्रह । आज मैं
कृतार्थ हो गया | मंत्री के मुंह से ये शब्द सुन महारानी आश्वस्त हो गई। वह
अब दोनों ओर से सुरक्षित थी । कुछ क्षण वहां रुककर महारानी लौट गई।
महारानी के वहां से प्रस्थान करते ही मंत्री को अपनी स्थिति का भान हुआ |
वह सोचने लगा--राजा ने उदारता में हृद कर दी और मैंने तीचता में । उसने
मुझे अपना मंत्री बनाया, मित्र बनाया, छोटे भाई-सा प्यार दिया और मैंने क्या
किया ? जिस डाल पर बैठा उसी को काटने का प्रयास ! अब कौन-सा मुंह लेकर
राजा के सामने जाऊंगा ? आत्मग्लानि में उसने हाथ में कटारी ली और उसे
अपने पेट में घुसेड़ने के लिए उच्चत हुआ ही था कि पीछे से किसी ने उसका हाथ
पकड़ लिया | मंत्री ने मुड़कर देखा, वह और कोई नहीं राजा ही था। मंत्री की
निगाहें नीची हो गई | वह रुआंसा होकर बोला---राजन् ! मेरे जैसा पापी इस
संसार में कौन होगा ! अब मेरा जीना व्यथ्थ है । मुझे मरने दो ।
राजा ने मंत्री के मुंह पर हाथ रखकर कहा--मित्र ! ऐसी बात फिर मुंह से
मत निकालना । तुम इतने आतंकित क्यों हो रहे हो ? सोचो तो सही, तुमने किया
ही क्या है ? मेरे मन में तुम्हारे प्रति गहरा विश्वास था, इसीलिए मैंने यह कदम
उठाया। अन्यथा मैं ऐसा बचपना क्यों करता ? तुम अतीत को विस्मृत कर दो
और नयी यात्रा शुरूकरो 1.
मंत्री राजा की इस आत्मीयता से द्रवित हो उठा। वह मुंह से कुछ नहीं
बोला, पर उसकी भावपुर्ण आंखें कह रही थीं--धन्य हो, राजन् ! संसार में ऐसे
व्यक्ति मिलने कठिन हैं । आपने मुझे प्राणदान दिया है। आपने केवल मेरे शरीर
को ही नहीं वचाया है, आत्मा को बचा लिया है। अब मेरी वासना का वेग समाप्त
है। मैं स्वस्थ हूं । मेरा जो भी उपयोग हो सकता हो, करो ।अब मुझे अपने लिए
नहीं, आपके लिए जीना है, मानव जाति के लिए जीना है।
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