श्री ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रम भाग - 1 | Shri Gyata Dharm Kathang Sootram Bhag - 1

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Shri Gyata Dharm Kathang Sootram Bhag - 1 by कन्हैयालाल जी महाराज - Kanhaiyalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे अनगारधर्मास्तवषि णीटीका_सू, २ खुधर्मास्वामिन:घम्पानगर्यासमच सरणस्‌ १३ करणमप्ततियुक्त इत्यथः । चरणप्रवानः, चरणज”्महात्रतादि मूलगुणरूप, तत्पधान:, चरणपप्ततियुक्त इत्यथे! । निग्रह।॑इन्द्रिय नो इन्द्रियनिरोधकर णेन स्वा- त्मनो5पूजबी येपरिस्फोटर्न, तत्पधान।। निम्यप्रधाना-निश्चय/जीवाजीवादि- तत्तानां निगेषः-ग्रहीताभिग्रहापूत्तां दाहयेत्रा, तत्मधानः। आजजप्रधान;- _ ऋणो भाव आजेबंन्मासाराहित्ये, ” तत्यधान! स्फटिक्बल्निमेल हृदय इत्यथः । मार्दवप्रधान॑;-मुदोर्भावो मार्दब-निरहड्जारता, तत्मधानः जात्या- £ ६ विधमदरहित-इत्यथेः । छामवप्रधानः-लघोर्मानों लामर्॑नद्वव्यतः स्वल्पोपधित्त॑: सप्तति शात्रों में प्रकट की गई है वह इनमें प्रभान थी-अर्थात्‌: करण सप्तति से ये युक्त ये अता ये करण प्रधान थे महा व्रतादिरुप जो चरणसप्तति है वह मी इनमें प्रधान थी अतःचरण प्रधान थे। इन्द्रिय और नो इन्द्रिय रूप जो मन है उनका इन्होंने निरोधकर दिया था इससे बाह्य विययों में इनकी प्रश्न॑क्ति , नहों सकने के कारण इत्तकी आत्मा में अपूर्व वीयॉलछास: प्रकट हो. चुया था इस से ये प्रधान्तरूप से विराजित हो रहे थे अतानिग्रहप्रधान-थे। जीता द्वि तक्त्वो का निणेय करना-अथवा जो अभिग्नह छेलिया है उसका हृढता के साथ पालन करना-यथह निम्वय दाव्दका वाच्यथ है। यह निश्चय भी इनमें प्रभान रूप से रहता था. अतः ये निश्चय प्रधान थे। मायाचारी से रहित होना इसका नाम आजव है। थे इस गुण से युक्त थे। अर्थात्‌ जिस प्रकार स्फटिक निर्मल होता है उसी प्रकर इनका हृदय भी निमलछ था। अतः आजब प्रधान थे। जाति आदिका जो अहंकार भाव होता है वह सदर कहलाता है-ये इस तरह के मद विनिम्तुक्ति थे-इसलिये मादेव भांव -भथांत्‌ 4२० मित्तेरीयी युझत छत, पेथी तेथे। अरणुअधान छवा भडाजताहिशिप ०? थरणए] सप्तति छेते पणु तेगे थेम्ुण्यश्पे &ती भारे यरणु प्रधान रुतां, मे मन्ने भुशुथी शुदत &प, छज्द्िय जने ने। धन्द्रिययप ०? भन छे, तेने। श्रम निशेध 3ये छते। अंथी जाद्य- विषयिभां खेमनी अनत्ति नि थवाने वीपषे खेभना सात्माभां पूर्वी वियेव्क्षास अ५2 थये। छते,, सेथी के अधानश्पथी शे।लित 'थता रुूता, ग्मेटक्षा भादे से निज अधान ता. 25१ बणेरे तत्वेनोा निय 3रवे। जथवा न? मलिथर वे छ, तेछ' (निश्चित पाध्षन 3रब, जा निश्चय शण्दने। वाच्यार्थी छे, जा निश्चय पणु जेभनाभां भ्रुण्य 2पे रछेते। छते। तेथी मे निश्चयअ्रधान छा, भावायारीथी असु्धत थव' तेचच नाम खर्ाव 98 जा जुणुथी यु्रत छत, जधांत्‌ प्रेम स्शटिद्ध स्पन्छ छाय छें, तेम० शेभव ७७ निमाण छत, मिटा भाठे थे स्यानवअधान रूपा, व्यति बणेरेने। ० जरूआर भाव जाय 9, तेने भद् अडेवाभा जावे छे, थे जा अड्वारना भव्यी श्ित छूता, गेटवे ५ व्यतिभहद इुणभह् पर्णरेथी से रदित छता. खेथी ८८ भाईव अधान छता, द्वव्य




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