देवकी का बेटा | Devaki Ka Beta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२८ देवकी का बेटा
देखनेवाला आदचयं में पड़ जाता था । उसे देवकी से अत्यन्त प्रेम था। वह
उसकी सबसे छोटी स्त्री थी मौर सबसे अधिक सुन्दर थी। उसने देवकी से
पहले तेरह स्त्रियों से विवाह किया था, उनमें कुछ आर्य्य स्त्रियां थीं, और
कुछ गोप कन्याएं थीं। इस समय जीवन के भय से उसने चुपचाप अपनी
स्त्रियों और समस्त संतानों को गोकुल में नन््दगोप के पास छिपा दिया था।'
उसे निस्संतान करने को कंस निरंतर गोकुल में गुप्तघातकों को भेजा करता
था। ओर इसमें वह अपने अनाय्यं मिश्रशासकों का सहयोग प्राप्त किया करता
था। वसुदेव के भाई भी इसी प्रकार छिपे हुए पड़े-पड़े अपने-अपने जीवन की
रक्षा कर रहे थे । वसुदेव का प्रजा में मान था। इसलिए जब उसकी चालों
का भण्डा फूट गया तव भी कंस उसे एकदम मार न सका था। वसुदेव और
देवकी में प्रेम हो गया था। कैसी अजीव बात थी ! जब वसुदेव ने देवकी से
विवाह किया और उसे स्वयं कंस रथ में पहुंचाने चला तब किसी चर ते
कंस को सावधान कर दिया। वह कण्ठ में दवे, परन्तु पैने स्वर से बोला और
आकाशवाणी-सा सुनाई दिया'--कंस ! तूने अपनी अंतिम बहिन से स्नेह
किया है, परंठु वह वसुदेव वृष्णि के साथ पश्यंत्र कर रही है, कि तुझे
सिंहासन से उत्तार सके और फिर गणराज्य को स्थापित कर दे। सावधान !
देवकी और वसुदेव ने परस्पर शपथ ली है कि जब तक हम हैं तब तक, बोर
हमारे बाद हमारी संतान भी इस निरंकुशता से युद्ध करती रहेगी !
बस पांसा वहीं से पलट गया था। कंस ने देवकी के भयार्स नयनों को
देखा था। उसने वसुदेव का वध करना चाहा, परन्तु देवकी ने तब भी सुहाग
की भीख मांगी थी । और कंस ने कहा था, “अच्छी बात है।” उसने कौर
भी क्रकर्म सोचा और उन्हें कारागार मे डाल दिया था।
वृष्णियों का पड्यंत्र उस समय धक्का खा गया! और वसुदेव ने देवकी
के साथ कारागार में जो दस वर्ष बिताए थे, वैसे वर्ष संभवत: कोई नहीं
बिताता। *
वह पिता था, देवकी माता थी । उसके शिक्षुओं का मामा कंस ही उन
| 7 4. चीन काल में कप्ठ से बोलना भी श्रचलित था, गले में से ऐसे बोला जावा
था कि सुननेवाला यह नहीं समझ प्राता था कि कौन बोल रहा है ॥ ग्रोग्रिदा पाशय ऐसे
बोलते हें । इसे यूरोप में “बंण्ट्रोक्यूलिउ्स” कहते हैं +
User Reviews
No Reviews | Add Yours...