चैतन्यचन्द्रोदय भाग - 1 | Chetany Chandroday Bhag - 1

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Book Image : चैतन्यचन्द्रोदय भाग - 1  - Chetany Chandroday Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, वैराग्यिप्रकरण-1- न] अरु वशिए आदिक सभा बैठी , तंदां,बिशेषि 1 जाय रघबंशमाणि; बशिछज्ञी के,संगर। कथा वबारता नेम सो, करहि नित्य वह रग-ता सो० तहँ यह दिवस नरेश कहत भयों हे रामजी !। / , .. ॥ ' तुम वनाय सब. भेश हित शिफार -जेया करहछु ॥ 1 । »तिदहे अवसरे सम ज़ान रामचन्द्र की अवस्था ... * 'पोड़श बंप, प्रमान सहँ कमती थोरहिः रही: ॥ :, वो०1रहेलपनरिपदनसवसाथा। कतहूँ भरत,नहान गया धागा तिनहूँ [संगः चूची इतिदाँसा। कराहिलुनाहिलचसहितहुलासा। सर्ध्या स्नानादिऊतिहि लेगा । नित्य कर्म करिके वह रंगा ॥ पुनिउठिसबमिलिभोजनखाहीं ॥ तव अह्देर खेलन-को जाहीं ॥ तहेँ देखांह जो, पशु दुखढाई। ताको सबमिलि मारहि वा: अवर/लोग कहें करत अनन्दा । चले जात खेलत रधनन्दा,॥ रात्रिसमय बाजनेहिवजावत । सद्दितनिशान वासनिजअंवत ॥ भस करतहि कोतिक़ दिनबीते। तवहिं राम बाहिरतेःरशीते .॥ ' निञ्ञ।झंत.पुर में सो गयऊ। शोकसहित इस्विततहँभयऊ ॥ राजकुंवर फी 'चेए्टा ,जेती,!। रही त्यागि दीन्ही तिन तेती ॥ झरू एकान्त साहेँ-पुनि' जाई १ चिन्ता घुत्तः चेठे /शिरनाई ॥ जेते कछु रस सहित ,भनेका ॥ इन्द्री क्रेर.विपय अख्िबेफा ॥| त्यागि दियो। त्तन ते यहिभांतीः। दर्बल भंये ।धरी सख' कांती व पीत बण हैः गयहु- शरीरा 1 जसे होत कमल विन नीरा ॥ होति शृकः के पीत अबीरा। तेसे, होड़ गई।मुख पीरा॥ तापर म्धुकर, बैठत आइडे' । तिमिसूखे सुख नयन'/लेखाई ॥ दा ० | होनलगी छविसोसई इच्छा निछुत करालर्ग ! ०। जेसे निर्मल 'होतहे शरब्फाल मेँ ताल ॥ ! तेसे इच्छा रूप यह मल ते रद्दित-उठोत ए #चित्त रूप सब भांतिते तालहु निर्मलहोत ॥ ' सो०।भअरुह्ैज्ञात शररि दिनदिनये निर्मल झविक | ! ०) 1 ० आई




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