साहित्य - सुमन | Sahity - Suman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनुष्य की बाहरी आकृति सन की एक प्तिकृति है. १७
मानसिक शक्ति प्रकट करता हैं । फसड़ी नाऊ, मोटे होंठ, मोटे चाक्ष
सैपे हपशियों के होते हें, डुद्धितत्व के दास के चोतक हैं । जिसमें ये
दाह्ुण मिलते हों, अवश्य उसमें बुद्धितर्य की कमी होगी। केवल
यही नहीं, बरन् चढ़ ध्रकु का भोंडा और शरारत का पुतला दोगा।
जायवरों में भी एक-ण्क गुण ऐसा देखा जाता हे, जिससे उस विशेष
गुण का उसी से नाम पड गया है । जैसे “काकचेष्टा” श्रर्थात् कोए
की सी चे्टा, “रकध्यान” बगुले के समान ध्यान दागाना। अब
जिसकी चेष्टा कौए की सी या ध्याय यगुले के समान हो या जिसके
चेहरे पर कौवा-बगुले का-सा भाव भ्रकट होता हो, बस जाये लेना
चाहिए कि इसमें उस जीव का कुघ गुण अवश्य है। इसी तरह पर
“पोडमुद्दा” शर्थाव् घोडे का-सा लवा मुँदवाला छुनद्दी और जी का
कपदी होगा । यही वात छुखरी-सा सुंधवात्ने में होगी इत्यादि।
और भी भारी सिरथाला घुद्धि का तोदण शौर गभीर विचार में
प्रवीण होगा । लबकण अर्थाव् जिसके कान के नीचे की लौर लबी
होगी, घढ अ्रवश्य दीर्घजीदी होगा। जिसकी जीम प्रमाण से भधिक
लगी होगी यह या तो चटोरा या बढ़ा बकतादी होगा । निदान
“य्प्नाकृतिस्वत्न गुणा चप्तन्ति” सामुद्रिक शास्ध का यह सिद्धात
बहुत द्वी ठीक है । इसी से काजिदास श्रादि कवियों ने बडे लोगो
के शरीर फे वर्णन में--
“च्यूडरस्की उपस्कृष आानप्राशुमराभुज ,
आत्मकमत्म देह च्ात्रो धम श्वाश्रत 1?
इत्यादि अनेक श्लोफ इस विपय फे लिखे हैं।
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