साहित्य - सुमन | Sahity - Suman

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Sahity - Suman by श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनुष्य की बाहरी आकृति सन की एक प्तिकृति है. १७ मानसिक शक्ति प्रकट करता हैं । फसड़ी नाऊ, मोटे होंठ, मोटे चाक्ष सैपे हपशियों के होते हें, डुद्धितत्व के दास के चोतक हैं । जिसमें ये दाह्ुण मिलते हों, अवश्य उसमें बुद्धितर्य की कमी होगी। केवल यही नहीं, बरन्‌ चढ़ ध्रकु का भोंडा और शरारत का पुतला दोगा। जायवरों में भी एक-ण्क गुण ऐसा देखा जाता हे, जिससे उस विशेष गुण का उसी से नाम पड गया है । जैसे “काकचेष्टा” श्रर्थात्‌ कोए की सी चे्टा, “रकध्यान” बगुले के समान ध्यान दागाना। अब जिसकी चेष्टा कौए की सी या ध्याय यगुले के समान हो या जिसके चेहरे पर कौवा-बगुले का-सा भाव भ्रकट होता हो, बस जाये लेना चाहिए कि इसमें उस जीव का कुघ गुण अवश्य है। इसी तरह पर “पोडमुद्दा” शर्थाव्‌ घोडे का-सा लवा मुँदवाला छुनद्दी और जी का कपदी होगा । यही वात छुखरी-सा सुंधवात्ने में होगी इत्यादि। और भी भारी सिरथाला घुद्धि का तोदण शौर गभीर विचार में प्रवीण होगा । लबकण अर्थाव्‌ जिसके कान के नीचे की लौर लबी होगी, घढ अ्रवश्य दीर्घजीदी होगा। जिसकी जीम प्रमाण से भधिक लगी होगी यह या तो चटोरा या बढ़ा बकतादी होगा । निदान “य्प्नाकृतिस्वत्न गुणा चप्तन्ति” सामुद्रिक शास्ध का यह सिद्धात बहुत द्वी ठीक है । इसी से काजिदास श्रादि कवियों ने बडे लोगो के शरीर फे वर्णन में-- “च्यूडरस्की उपस्कृष आानप्राशुमराभुज , आत्मकमत्म देह च्ात्रो धम श्वाश्रत 1? इत्यादि अनेक श्लोफ इस विपय फे लिखे हैं। 1




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