बाल रूप प्राकृत | Bal Rup Prakrit

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Bal Rup Prakrit  by उदयचन्द्र जैन - Udaychnadra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नै आल रूप प्राकृ. छपपः)तायिथयाओं ७ मागधी में 'से' (पु.) का ही प्रयोग है । शौरसेनी, महाराष्ट्री में 'सो' का प्रयोग है । मागधी/शौरसेनी में णमति के स्थान पर णमदि । अर्धमागधी में 'णमति' के अतिरिक्त भी 'णमह' भी होता है | जाणइ (आ. 15/169) वीअ-पण्णावणा कर्ता (प्रथमा बहुवचन) ते 5 वे, वे दोनों, वे सब । ताओ > वे, वे दोनों, वे सब । वाक्य प्रयोग ते जयंति > वे जीतते हैं । ते भवंति > बे होते हैं । ते जीवंति > वे जीते हैं । ते हसंति > वे हंसते हैं । ते भासंति « वे कहते हैं । ते पचंति 5 वे पकाते हैं । ते णयंति > वे ले जाते हैं । ते चयंति 5 वे छोड़ते हैं । ते णमंति « वे नमन करते हैं । ते धाबंति > वे दोड़ते हैं । ७ प्राकृत कीजिए वे स्मरण करते हैं । वे जानते हैं । वे इच्छा करते हैं । बे रक्षा करते हैं | वे चलते हैं | वे बोध करते हैं । वे चढ़ते हैं । वे रहते हैं । वे प्रशंसा करते हैं । वे दोनों गिरते हैं | वे सब भजते हैं । क्रिया प्रयोग चर (चर्‌ 5 चरता है), खाद (खाद - खाना), भव (भू 5 होना), यच्छ (यम्‌ 5 चाहना), गृह (गुहू 5 छिपाना), दस (दंशू 5 काटना), धम (ध्मा 5 नीचे जाना), पस्स (दृशू देखना), दिव्य (दिय्‌ 5 प्रकाशित होना), सम्म (शम्‌ 5 शमन करना), सम (शम्‌ - शमन करना), सम (श्रम्‌ 5 परिश्रम ऋरना), भिस (भ्रेंश 5 गिरना) ७ निम्न प्रत्यय युक्त क्रियाओं का अर्थ कीजिए - चरंति, खादंति, भवंति, यच्छेति, गूहंति, दसंति, हिंसंति (हिंसू 5 मारना), वर्धेति (वंघ्‌ « बंध करना) , ८ उकलनन का +० ७ संपतंति (सं + पत 5 गिरना), उद्दायंति (उत्‌ + तापू « जकड़ना), रमंति (रमू 5 ग्मग करना), धमाल (भयू - डरना), समंति (सम्मेंति), दिव्वंति, भिंसेंति, करेंति, तदंति (तपू 5 दय करना), लाहम (४ 5 शोभित होना) हि शा क िशनन>+-> कस कम मसकन सनक विनननननननम-न-नपनमम-म+ न ज+- थम न- 3 कनमम न +नन नम मनन मम+++-क++न-म नमन ननमन-++ननानी मनन +न-+नम-न-+++ 5 9 86




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