प्राकृत व्याकरण | Prakrit Vyakarana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
612
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ हरे )
अनुसार वे प्यार की मूर्ति थे । वे सरल र्वभावी और पर उपकारी थे। ७
जीवन से समाज को स्नेह का सौरम ओर विचारों का प्रकाश निरन्तर देते .
एक चमकते हुए सितारे थे। आपको दिवय जीवन प्रकाश-स्तम्भ ससाच था |
तथा प्रेम-मूर्ति थे । समाज के आप महान् मूक्त सेवक थे। “स्वकृत सेवा के
यश से दूर रहना” यह आपके सुन्दर जीवन की एक विशिष्ट कला थी। ,
विकसित और विश्व-्रेम की सुवासना से सुवासित एक अनूठा जीवन
आदश काय-कर्ता थे” इत्यादि इत्यादि रूप से उन्नत शोक सभाओं में ; 4
गुणों पर प्रकाश डाला गया थी ।
विक्रम संबत्त २०१६ के पीए शुक्ला दशमी शुक्रवार को दिन के ६३ न
सहष * ब्रत” के रूप में आहार पानी ग्रहण करने का सवथा ही परित्याग
को जैन-परिभाषो में “संथारा-त्रत” कहां जाता है। ऐसे इस महान् ब्रत
साधना के रूप में ग्रहण करके आप इंश-चिन्तन में संलग्न हो गये थे; धर्म-०्व
चिन्तन में ही आप तल्लीन हो गये थे। यह स्थिति आधे घंटे तक रही एवं
समाज तथा अपने प्रिय शिष्यों से एवं झुनिवरों से सभी प्रकार का भौतिक
स्वर्ग के लिये अन्तर्धान हो गये ।
आपकी अंतिम रथन्यात्रा में लग भग बीस हजार की मानव-मेदिनी
अनेक गाँवों से आ आकर एकत्र हुईं थी। इस प्रकार इस प्राकृत-व्याकरण के दिन
भोतिक-शरीर का परित्याग करके तथा अपनी अमर यशो-गाथा की “चारित्र-साहिए
के ज्षेत्र में परिस्थापना करके परलोकवासी हो गये ।
आशा है कि प्राकृत-व्याकरण के प्रेमी पाठक आपकी शिक्षा-प्रद थशों ।
शिक्षो अवश्यमेव अहण करेंगे। इति शुभमू--
उदय मुनि (सिद्धा
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