सम्राट की आंखें | Samrat Ki Aankhen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samrat Ki Aankhen by कमल शुक्ल - Kamal Shukl

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कमल शुक्ल - Kamal Shukl

Add Infomation AboutKamal Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
न्स्ह न साँप मरेगा । निविध्त स्वयंवर ही जामेगा और ओपसी औषगड़ा भी नहीं गा । रे हक ८>करक 5 कं «आपकी बातों पर विचार करूँगा, चाचाजो “अभी मुझे सोचने का मौका दीजिए । आम आडसह5 रागमल की समझ में अच्छी तरह आ गया कि जयवन्द पर उनकी बातों का कोई भी असर नहीं पडा । वे मौन हो गये । दूसरे दिन निमन्‍्त्रण भेजे जामे लगे। हर राज्य के राजा को यहू न्योता दिया गया । एक विशेष दूत को देहली भेजने के लिए बुलाया गया । जयवन्द ने अपने हाथों से इस दूत को पत्र और निमन्‍्त्रण दिया । वे बोले-”इस पत्र का तुम्हे उत्तर लागा है, दृत ।” यदि पृथ्वीराज दालम- टोल करे, तो यही कहना कि मुझे पत्र का उत्तर चाहिए । मैं जवाब लेकर ही वापस जाऊँगा ।” राजधानी मे इस बात की चर्चों जोर पकड गई कि राजा जयचन्द अपनी वेदी सयोगिता का स्वयवर कर रहे हैं। इसमें देश के सभी राजा आयेंग्रे। इसीलिए स्वयंवर के लिए वहुत ग्ड़ी रंगभूमि बनाई जा रही है। प्रजा में उमग आ गई। लोगों में उत्साह हिलोरे लेने लगा। देहली जाने वाला दूत अरबी धोड़े पर सवार था। उसे यह विशेष घोड़( इसलिए दिया गया था कि कल्नौज से देहलो तक का मार्ग जल्दी ही तम्र ही जाए। हु सोचता जा रहा घा कि मैं शेर की मद में जा रहा हू) उसके दरवाज पर ज्ञकर यह कहूँगा कि मैं तुम्हारे दाँत तोड़ने के लिए आया हूँ । शेर गुर्रेयेगा । उसे गुस्सा आयेगा। ऐसा भी हो सकता है, सम्राट पृध्दीरत मेरा सिर घड से अलग कर दे।” दूत के अब देहली की गगनचुम्दी अट्टालिकाएँ दिखलाई पड़ने लगी थी । उसके हृदय की घड़कन तीड़ हो गई । दोपहर बीत चुकी थी। तीसरे पहर दूत ने देहली नगर में प्रवेश किया ३ वह नौवतजाने भे पहुँछा) वहाँ सना दी कि बह कन्नौज से




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now