सर्वात्मचेता कबीर | Sarvatamakcheta Kabir

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Sarvatamakcheta Kabir by डॉ सरोज बिसारिया - Dr. Saroj Bisariya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म हुआ पाद्ध परम का शुन्यवाद नाथ सम्प्रदाय का ऊवधूत मावना और याग क्ज्यानी सिद्धां की संध्या भाषण की उलट वासियों तक का इसमें समाहार हैं। सन्त काव्य में अचतार मूर्ति तीर्थ व्रत करा कड़ा विरोध किया गया है तथा शून्य काया सहज समाधि याग इला पिगला सुपुम्ना पटचक्रे सहस्त्रदल कमल सूर्य चन्द्र प्रतीकों को ग्रहण किया गया है सन्त मत क्यों कि कागद लेखी पर आधारित न होकर आखिन दखी पर आधारित है अत्त सन्त कवियों ने जो कुछ देखा मो कुछ सुना उसे गुना ओर अपनी वानियों में ढाल दिया। सन्त मत में सम्तों की वानियों में भक्ति की भी पयाप्त झलक मिलती है ऑखन देखी कहने वाले वैण्णव धर्म से कंसे अछूते रह जाते | आलवार भक्तों का धार्मिक आन्दोलन कुमारिल भट्ट शंकराचार्य माधमुनि गमानुजाचार्य निम्वार्काचार्थ आदि की धार्मिक दार्शनिक प्रवृत्तियो का भी प्रभाव सन्त मत पर पड़ा। कवीर और परवर्ती कवियों पर इसकी झलक वहुतायत में मिलती है। द्ाधिड्ी ऊपयी जिस भक्ति को रामानन्दाचार्य दक्षिण से उत्तर में लाएं उसक आराध्य राम थे भगति द्रावड़ी ऊपनी लाए रामानन्द यह राम संतों के भी ऊक्षय पुरुप थे। हां सनतों के राम के आगे एक विशेषण लग गया था निर्गुण निराकार कबीर ने निर्गुणि रास जपहुं रे भाई कह कर इसी का अनुमोदन किया है। सन्त मतावलम्वियों को विशेष कर सहज प्रेमी कवीर को सुफी दर्शन ने भी कम प्रभावित नहीं किया। सूफियों की प्रैम की पीर सन्त काव्य में यत्र तत्र सर्वच्र दिखती है कवीर के निम्न दोहे में इसी प्रेम की पीर की गहनता व्यंजित है यह तन जारों सप्ति करों लिखाँ रास को नांऊ लेखणि करों करके की लिखि रामहि पठाऊं अखिड़िया झाई परी पंध निहार निहार जीमड़ियां छात्रा पड़ा नाम पुकार पुकार साहित्यिक परिवेश - कवीर से पूर्व भारतीय धर्म साधना ने वहुरंगी साहित्यिक परिश्थितियों की रचना कर दी थी। अलवार भक्तों के समय से ही वैप्णवत्ता से युक्त साहित्यिक परम्परा चल निकली थी। शंकराचार्य (अड्दैत) रामानुजाचार्य (विशिष्टाडैत) मध्वाचार्य (हैताईत) बल्लभाचार्च (शुष्धाहत) आदि कं साहित्य को वैदिक साहित्य की वलशाली भूमिका मिली वेद पुराण श्रुति स्मृति उपनिपद आरण्यक आदि की ममृब्द वस्तु और शिल्प नें इन्हे प्रेरिनि फ़िया दार्शनिक सिंद्धान्तो और उपदर्शों के लिए तो यह बस्तु और शिल्प ठीक था किन्तु जन आन्दोलन की दिशा पकड़ने वाले साहित्य कबीर ही




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