न्याय - दर्शन | Nyay - Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
257
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
संसार में प्रत्यक प्राणी सुख की खोज में प्रयत्त कर रहा है ।
छोटा-बड़ा, भज्ञानी ज्ञानी प्रत्येक व्यक्ति सदेव इसी चेष्टा में लगा रहता
है कि उसे किसी प्रकार की असुविधा, दुःख सहन न करना पड़े ओर
उसकी सब आवश्यकताओं, अभिलाषाओं की पूर्ति होकर वह सुख, च॑न
का जीवन व्यतीत कर सके । पर परिणाम सेव इसके ज्ञिपरीत ही
दिखाई देता है । संसार में ऐसे मनुष्य इने-गिने ही मिलेंगे जो अपने को
सुखी कह सकें । साधारण लोगों की बात तो छोड़ दीजिये जिनको रोटी,
कपड़ा तथा अन्य जीवन-निर्वाह की वस्तुयें भी पर्याप्त मात्रा में नहीं
मिलतीं, तथा जो नौकरी, मजदूरी, रोजगार की तलाश में ही प्रायः
इधर-उधर फिरते रहते हैं, पर मध्यम और उच्च श्रेणी के कहलाने वाले
भी,*जिनको भरपेट उत्तम भोजन, बढ़िया कपड़े और मनोरंजन के सुख-
साधन प्राप्त हैं, अपने को पूरा सुखी नहीं समझते हैं। वातचीत में वे प्रायः
तरह-तरह के अभावों तथा कठिनाइयों का ही जिक्र करके प!ये जायेंगे ।
क्तिने ही 'बडे' माने जाने वाले लोगों का जीवन तो जाहिरा ठा5-बाठ
और सुख-बैभव के होते हुये भी इतना द्व;खपूर्णं और आपत्तियों से घिरा'
होता है कि वे जीवन से मृत्यु को ही श्रेष्ठ बतलाते हैं। संसार में ऐसे
लोगों की शोचनीय अवस्था सबको प्रत्यक्ष दिखाई पड़ जाती है। _
इस विपरीत अवस्था का क्या कारण है ? मलुष्य सुख की अभि-
लाषा, प्रयत्न करते हुये भी दुःख, कष्ट, अभाव में क्यों: ग्रसित हो जाता
है ? संसार के भौतिकवादी, जिनमें आंजकल के बड़े-बड़े जगत प्रप्तिद्ध
विदेशी बिद्वानों की गणना भी की जा सकती हैं, तो इस ' समस्या का
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