भिक्षु यश रसायण | Bhikshu Yash Rasayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_ मिश्ठु यश रसायण ६ १७
जिनजी भात्िियों रे, इम कहसी भेष र।. ए बं
णी रुघनाथजी रे तिणवार ॥ च९ ॥१८॥।
रे हुईं घणोरे, चरचा मांहों मांय। 'क्षेप
त्र॒ ही इहां रे, पूरी केशव हाय॥ च०॥ १६॥
दरृब्य॒ 6 है मिक्खु भणी रे, दोय घड़ीं शुभ
ध्यान । चो गे चारित्र पाक्तियां रे पा के ..।न
॥ च०॥ २०॥ भिक्खु कहे इश विध है रे, वे घड़ी
केवल ज्ञान । तो दोय घड़ी तांई रह रे, श्वास रुंधी
घरूँप्प ॥ ०॥ ११॥ प्रभत्र | जंभव आदि दे
रे, थे घड़ी पाल्यो के नाहिं। केव त्यांने न उपनो
रे, सोच विचारों मन मांहि॥ च०॥ २१॥ चवदे
हँस शिष्य वीरना रे, ॥त सो केवली सोय। तेर
सहंस ने तीन गे रे, छप्मस्थ रहिया जोय ॥ च०.॥
२३ ॥ त्यांने के नहीं उपनो रे, त्यां बे घड़ी ढछथो
के हिं। थारे ले त्यां पिण नहीं पालियो रे, बे
घड़ी चरण सुहाय ॥ च० ॥ २४॥ रे वर्ष तेरह पखे
रे, वीर रह्मा छद्मस्थ । थारे ले त्यां पिण नहीं
पालियो रे, दोय घड़ी चारित ॥ च०॥ २५॥ इत्या- |
दि हुईं घणी रे, चरचा मांहों मांहि।- सममाया
मम नहीं रे, किया नेक उपाय ॥ च० ॥ २६॥
पवर ढारू ही पांचमी रे, च्र्चों विविध प्र र।
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