भिक्षु यश रसायण | Bhikshu Yash Rasayan

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Bhikshu Yash Rasayan  by दुर्जनदास सेठिया - Durjanadas Sethiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ मिश्ठु यश रसायण ६ १७ जिनजी भात्िियों रे, इम कहसी भेष र।. ए बं णी रुघनाथजी रे तिणवार ॥ च९ ॥१८॥। रे हुईं घणोरे, चरचा मांहों मांय। 'क्षेप त्र॒ ही इहां रे, पूरी केशव हाय॥ च०॥ १६॥ दरृब्य॒ 6 है मिक्खु भणी रे, दोय घड़ीं शुभ ध्यान । चो गे चारित्र पाक्तियां रे पा के ..।न ॥ च०॥ २०॥ भिक्खु कहे इश विध है रे, वे घड़ी केवल ज्ञान । तो दोय घड़ी तांई रह रे, श्वास रुंधी घरूँप्प ॥ ०॥ ११॥ प्रभत्र | जंभव आदि दे रे, थे घड़ी पाल्यो के नाहिं। केव त्यांने न उपनो रे, सोच विचारों मन मांहि॥ च०॥ २१॥ चवदे हँस शिष्य वीरना रे, ॥त सो केवली सोय। तेर सहंस ने तीन गे रे, छप्मस्थ रहिया जोय ॥ च०.॥ २३ ॥ त्यांने के नहीं उपनो रे, त्यां बे घड़ी ढछथो के हिं। थारे ले त्यां पिण नहीं पालियो रे, बे घड़ी चरण सुहाय ॥ च० ॥ २४॥ रे वर्ष तेरह पखे रे, वीर रह्मा छद्मस्थ । थारे ले त्यां पिण नहीं पालियो रे, दोय घड़ी चारित ॥ च०॥ २५॥ इत्या- | दि हुईं घणी रे, चरचा मांहों मांहि।- सममाया मम नहीं रे, किया नेक उपाय ॥ च० ॥ २६॥ पवर ढारू ही पांचमी रे, च्र्चों विविध प्र र।




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