हिंदी काव्य - धारा | Hindi Kavya Dhara

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Hindi Kavya Dhara by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की ि नवे-नयें छत्दोंकी सृष्टि करना तो इनका श्रदूभुत कृतित्व हैं । दोहा .. सोरठा चौपाई छण्यय भरादि कई सौ ऐसे नये-नये छ्दोंकी उन्होंने सुष्टि की जिन्हें हिन्दी कवियोंने बरावर श्रपनाया है यथपि सबको नहीं । हमारे विद्यापति कबीर सूर जांयसी श्ौर तुलसीके ये ही उज्जीवक श्रौर प्रथम प्रेरक रहे हैं। उन्हें छोड़ देनेसे बीचके कालमें हमारी बहुत हानि हुई और श्राज भी उसकी संभा- बना हैं । हमारे मध्यकालीन कवियोंने श्रपश्नंशके कवियोंको भुला दिया श्रौर वह प्रेरणा लेने लगे सिर्फ़ संस्कतके कवियोंसि । स्वयंभू श्रादि कविं श्रपनी पाँच शताब्दियोंनें सिर्फ़ घास नहीं थीलते रहे उन्होंने काव्य-निधिको और समृद्ध भाषाकों श्रौर परिपुष्ट करनेका जो महानू काम किया है हमारे साहित्यकों उनकी जो ऐतिहासिक देन है उसे भुला कर कड़ीको छोड़कर सीधे संस्कृत- के कवियोंसे सम्बन्ध स्थापित करना हमारें साहित्य शरीर हिन्दी-माषा दोनोंके लिए हानिकर सिद्ध हुभा हैं । हम संस्कृत कवियोंसे सम्बन्ध जोड़नेके विरोधी नहीं हैं लेकित हमें इस बीचकी कड़ी--जो हमारी श्रपनी ही कड़ी है--को लेते संस्कतके प्राचीन कवियोंके साथ सम्बन्ध जोड़ना होगा तभी हम ऐति- हासिक विकाससे पूरा लाभ उठा सकेंगे । २ आर्थिक और सामाजिक अवस्था १--सम्पत्ति और उसके भोक्ता सिद्ध सामन्त-युगकी कविताओंकी सृष्टि भ्राकाशामें नहीं हुई। वे हमारे देशकी ठोस घरतीकी उपज हैं। कबियोंने जो खास-खास शैली-भावकों लेकर कवितायें कीं वह देशकी तत्कालीन परिस्थितिके कारण ही । यह बात तब तक साफ़ नहीं होगी जब तक तत्कालीन भारतकी सामाजिक श्राधिक राजनीतिक बाभिक सॉंस्क़तिक श्रवस्थाओंकी पृष्ठ-मूमिमें हम उसे नहीं देखते । पहले हम उस काल--अथवा श्राठ्वीसि बारहवीं सदीकी पाँच सदियों-की आ्राधिक अवस्थापर विचार करते हैं। उस समय भारत बहुत सम्पन्न था। ग्रकेला रोम श्रपने यहाँसे हर साल ढाई लाख तोला सोना या साढ़े पाँच लाख सेस्तर्स




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