हिंदी काव्य - धारा | Hindi Kavya - Dhara

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Hindi Kavya - Dhara by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खेट श्रौर पटनाके राजमहलोमे विलासी भोजन शौकीनीके वस्त्र सुगप्रिते खिट्ये पर कितना खर्च होता रहा होगा । प्रजाकी मेहनतकी कमाईसे उपाजिते यह - महाघं वस्तुएं चार-पॉच दिनमे ही खतंम हो जानेवाली थी । इनके अ्रतिरिक्त भी सामन्तोके भारी खर्च थे ।--नये-नये महल क्रीडा-उपवन सिहासन राज- पलग मोरछल चमर श्रौर लाखोके हीरा-मोती-महाघं-रत्नोके भूषण राज- महलोकी सजावट चित्र-कला क्रीडामृग सोनेके पीजडोमे बन्द शुक-सारिका लोहेके पीजडोमें बन्द केसरी । दूर-टूर देशोसे लाई कितनी ही दुलंभ महाघं- वस्तुभ्नीके सचयमे भी देदकी सम्पत्तिका भारी भाग खर्च होता था । फिर सामन्त या राजा शझ्रकेलें ही उस सम्पत्तिको स्वाहा नही करते थे । उस समयके राजाझोके आ्रादशें थे--कृष्ण श्र दशरथ तथा उनकी सोलह-सोलह हजार रानियाँ । ये रानियाँ मोटा-कोटा कपडा पहन रूखा-सूखा खाकर दिन काटनेके लिए रनिवासमे नही रखी जाती थी । इन हजारो रानियो भ्रौर उसीके भ्रनुसार उनके पुत्रो-पुत्रियो बहुप्नो-दामादोका खचं भी देशकी उसी सम्पत्तिके मत्थे था । राजवदके श्रतिरिक्त कितने ही राज-च्युतत भगोडे राजवशी भी प्रजाकी गाढी कमाईमें आग लगानेके अधिकारी थे । उस वक्‍त राजवद्योका उच्छेद अक्सर होता रहता था फिर वे भ्रपने सम्बन्धियोके पास कन्नौजसे सिहल तकका चक्कर काटते रहते थे । इनके भ्रतिरिक्त राज-दरबारोमें कलाकार कवि सगीतज्ञ चित्रकार मूत्तिकार ही नही बहुत काफी सख्या विदूषको चापलूसो मसखरो श्रादिकी भी होती थी । इन अ्रमीरोकी सेवाका काम सिफं वेतन-भोगी चाकर-चाकरानियोसे नहीं चलता था उनकी सेवाके लिए काफी सख्या दास-दासियोकी होती थी । इसके वाद शिकार या किसी दूसरे मनोविनोदके लिए जिधर भी उनकी सवारी जाती उधरके किसान कमकर भर कारीगर अपने धन-उत्पादनके कामकों छोड बंगारम पकड़े जानेके लिए मजबूर होते । २ पुरोहित महंथ--राजा अपने श्र भ्रपने लग्गू-भग्गुझोपर कितनी सम्पत्ति स्वाहा करते थे इसका थोडा-सा झन्दाजा ऊपरके वर्णनसे लग गया व




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