भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर खंड 1 | Bhikshu Granth Ratnakar Khand 1
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
952
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नव पदारथ ; जीव पदारथ
माणवेतिवा** जीव रो
तिणरी परजा तो पलटे जाब,
कतातिवा* जीव रो नाम,
तिण सू तिणने कह्यो छे आश्रव,
विकतातिवा१ * नाम इंण न्याय,
आ निरजरा री करणी अमांम,
जएतिवा* * त्ञाम तणो विचार,
एक समे लोक अन्त लूग जाय,
जतृतिवा** जीव रो नांम,
चोरासी रुख जोनि रे मांहि,
जोणितिवा** जीव कहिवाय,
घट पट आदि वस्त अनेक,
सयंभूतिवा”” जीव रो नाम,
ते तो छे द्रव्य जीव सभावे,
सरीरेतिवा*'* त्ांम. एह,
सरीर पाछे नाम धघरायो,
नायएतिवा* ते कर्मा रो नावक,
तथा न्यात्र तणो करणहार,
अन्तरअपा* $ ते जीव रो नांम,
लेलीभूत छीे पुदंगल माहि,
द्रव्य तो जीव सासतो एक,
भाव त्ते ललग गण परयाय,
भाव तो पाच श्री जिण भाख्या,
उदे उपसम ने खायक पिछाणो,
उदे तो आठ कर्म अजीब,
ते उदे भाव जीव छै ताम,
उपसम तो मोहणी कर्म एक,
ते उपसम तो भाव जीव छे तांम,
ख्य तो हुवे आठ. कर्म,
ते खायक गुण छे भाव जीव,
वे आवरणी ने मे हणी अतराब,
जब नीपजेखय उपसमभाव चोखो,
त्तांम,
नवो नहीं सासतो छे ताम।
द्रव्य तो ज्यू रो ज्यू रहे त्ताय ॥ १५ ॥
कर्मां रो करता छी तांम 1
तिण सू लागे छ॑ पुदंगल दरब ॥ १६
कर्मा ने विधृणे छ ताय 1
जीव उजलो जे निरजरा ताम ॥ १७।
अति हि गमन तणो करणहार ।
एहवी सकत सभाविक पाय ॥ १८।
जन्म पाम्यो छे ठाम ठांग।
उपज्यो ने निसर गयो ताहि ॥ १६
पर नो उत्पादक इण न्याव ।
उपजावे निज सुविवेक ॥ २०
किण हि निपजायो नही ताम ।
ते तो कदे नहों विललाबे ॥ २१
सरीर रे अतर तेह 1
कालो गोरादिक नांम कहायों ॥ २२ ।
निज सुख दुख छे दायक ।
तेतो बोले छे वचन विचार ॥ २३
सर्वे सरीर व्यावे रह्यो तांध ।
निज सरूप दबे रह्यो त्यांही ॥ रे४
तिणरा भाव कह्मा छे अनेक ।
ते तो भावे जीव छे ताब ॥ २५।
त्यारा सभाव जू जूआ दाख्या।
खय उपसम परिणांमीक जाणो॥ २६
त्यांरा उदा सूँ नीपना जीव।
त्यारा अनेक जुआ जूआ सांम॥ २७।
जब नीपजे गुण अनेक।
त्यांरा पिण छे जुआ जूआ नांम॥ र८ ।
जब खायक गृण नीपजे परम।
ते उजला रहे सदा सदीव॥ २६ |
ए च्यारू कर्म खब उपसम थाय |
ते पिग छे राव जीव निरदोषों॥ ३० ।
क्षय
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