सुश्रुत संहिताया भाग 4 | Sushrutsahinta Bhag 4

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Sushrutsahinta Bhag 4  by पं. मुरलीधर शर्मा राज वैद्य - Pt. Muralidhar Sharma Raj Vaidya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ | उत्तरतन्त्रे-अ० १ १३४३ ) जे हपत्पातों तथेव्‌ थच ॥ शिराजावश्ननाख्या च शिराजाल च स्मृतम्‌ ॥ ३६ ॥ पवण्यथात्र्ण शुक्क शाणतामाजुनश् यः । एते साध्या विकारेषु रक्तजेषु भर्वीन्ति हि ॥ ३७॥ रक्तज नेन्नरांगाम रक्तस्राव अजकाजात शाणताश आर अवलंबित शुक्र य असाध्य होते ह. आर रक्त कांच एक याप्य ६ 1 ३७ ॥ और मथ स्यद कष्ट वत्म आर हषात्पात ( शिराहषे-शिरोत्पात तथा ) अज- नाख्या और शिराजाढ ॥ ३६ ॥ पव॑णी अव्रण झक्र शोणिताम ओर अजुन ये साध्य होते हैं ॥ ३७ ॥ संनिपातज साध्यासाध्यनेत्ररोग । पूयद्धावों नाकुरांप्यमक्षिपाकात्ययीउडठूजी ॥ असाध्याः सर्वेजा याप्यांः काच को पँश्व यक्ष्मंणः॥ ३८ ॥ वत्मोवबंधों यो व्याधिः- शिरासु पिडका च या ॥ प्रस्तायप्राषिमांसामस्ताय्वमोत्सोगेनी न्च्‌ या ॥ ये | पएृथाल्सखाइद चे र्यावकद्सवत्सना | तथाशावत्म शुक्राशः शकेरावत्म यज्य वें ॥ ४० ॥ सशाफश्ा- प्यशाफश्व पाकी बहलदृत्म वे। आक्िब्नवत्म कुभाका विसवत्सम चृ सिध्यात ॥ ७१ ॥ संनिपातंके नेत्ररोगोमेंसे एपखाव नाकुलांध्य अत्यक्षिपाक और अलजी ये चार असाध्य हैं और सत्रिपात कोच तथा पक्ष्मकोप ये याप्य हैं ॥३4॥ और वर्व्मावंध शिराकी पिडका प्रस्तायर्म अविमांसाम स्नास्वर्म उत्संगिनी मे ३२५ ॥ पूयाुुस अछुद श्याव और कदेमवत्म तथा अशोवत्म शुक्राश . शकेरावत्म ॥ ४० ॥: सशोफ॑अक्षिपाक अशोफअक्षिपाक वहलवत्म अक्लिन्न बत्म कुंभीका और विसवत्म ये १५ साध्य हैं ॥ ७१५॥ .... ८ ' सनिमित्तो3निमित्तश्व द्ावसॉध्यों तु वाहमंजों । पट्सप्ततिवि काराणामेषा संग्रहकीतेना॥ 8५॥ . ४. द ... सनिमित्त ( अभियातस नेत्र नष्ट होना) तथा अनिमित्त ( जिसका नि- । पित्त जाना नहीं जावे देव यक्षादि दोषसे नेत्र नंष्ट हो जावे ) ये दोनों वाह्य क्‍




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