यौवन की भूल | Yoovan Ki Bhul

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Yoovan Ki Bhul by बाबू ज्ञानचन्द्र जैनी - Babu Gyanchandra Jaini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड्‌ गोयन को भूल और दवाइयो की सेज पर से एक छाऊ बोतल उठा लाया। छल्कते नेत्रों से उसने काग सोछला और फ्रि दो गिलासों में मदिरा उँडेली ! पिएर ने गिलास के भीतर देखकर मदिरा का रग पहचानने का अयत्न करते हुए कहां--हलका शुलावी, क्‍यों ९ मारोवसको को सदिरा की गध ने उन्मत्त बना दिया था। नरे में झूमते हुए उसने फहा--हाँ ! डाक्टर ने एक-एक घूँट पी कर गिछास साली कर, ओठ चाटते हुए कह्ा--ओह, चहुत ही स्वादिष्ट ! बहुत ही स्वादिष्ट । बघाई मारोवसको | तव, मारोवसको ने यह प्रसंग छेड दिया कि उस मदिरा का नाम क्या रक्सा जाय । वडी देर की बहस के बाद उसका नाम “अगूरी” रसने का निएचय हुआ। फिर, वे कुछ देर चुप बैठे रहे । आज सन्ध्या को एक नई घटना हो गई --पिएर ने प्रकोछ की नीरबता को भग करते हुए कहा--मेरे पिता के एक मित्र की सत्यु का समाचार मिला है। वह अपना दानपतन्न ज्णाँ के नाम ढिख गया है ! मारोबसकी पहले तो वात ठीक तरह से समझ न पाया। उसने सोचा कि आधी जायदाद 5एँ को मिली होगी, आधी पिएर को , पर जब पिएर ने वात स्पष्ट करते हुए उससे फिर कहा, तो उसने आश्चर्य-मुद्रा घारण कर कदहा--यह ते ठीक नहीं जैंचता। श्३े




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