नेताजी और आज़ाद हिन्द फ़ौज | Netaji Aur Aazad Hind Fauj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.76 MB
कुल पष्ठ :
403
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पंडित जवाहरलाल नेहरू -Pt. Javaharlal Neharu
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शाहनवाज़ खां - Shahanavaj Khan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श
सहुसा प्रचार हो गया । मेताजी सबके लिए एक-सी फिक्र रखते थे ।
हुर जरूरतमन्द को वे स्वयं सिलते श्रौर सबकी शिकायतों को बड़े ध्यान
के साथ सुना करते थे । श्रस्पलालों सें श्राप सदा ही नियम से जाया
करते थे श्रौर सभी प्रदेशों में, सभी कैस्पों के श्रस्पतालों में बीसारों की
सुख-सुविधा तथा ध्रामोद-प्रमोद को व्यवस्था करने पर पुरा ध्यान
दिया करते थे ।
निस्वाथथ भावना को तो नेताजी सूरति ही थे । श्रापकी निजी
आकांक्षा या लालसा कुछ भी न थी । “बहतर एदिया सम्मेलन” में
इसका बहुत सुकर परिचय सिला था । जापान के प्रधान सनी जलरल
तोजा ने उसमें कहा था कि. सत्रतन्त्र भारत के संबेसर्वा नेताजी होंगे ।
नेताजी ने तुरम्त खड़े होकर जनरल तोजों से कहा कि उनको वैसा
कहुने का कोई श्रधिकार नहीं है । स्वतन्त्र भारत में केवल जसता ही
इसका फेसला करेगी कि कौन फ्या होगा ? मेँ तो श्पने देश को एक
जवना-सा सेवक हूं और उसमें सब कुछ होने का. चास्तविक अधि कार
लिन लोगों को है, वे महात्मा गांधी, सौलाना श्नुलकलाम 'प्राजाद
श्रौर पण्डित जवाहरलाल नेहरू हैं।
प्रान्तीय श्रयवना नाशिक पक्षपात यथा भेद-भाव के लिए श्रापके यहां
कॉर्ड स्थान ने था । इनको मानने थे श्राप साफ इनकार करते थे । हिन्दू,
मूसलमान प्ौर सिख श्रार्वि सें आप कुछ भी भेद न करते थे । इसका
झसर श्रापके साथियों पर भी पड़ा । हालांकि सबको श्रपने धर्म श्रौर
विश्वास के भ्रनूसार पुर्भा-पाठ बाकि करने की पुरी श्राजादी थी; तो
भी श्राजाद हिन्द फोज में साम्प्रदायिक संको्णता अथवा धार्मिक पक्षपात :
या भेद-भाव को कहीं गन्व ने थी । अपने साथियों में झापने यह भावना '
कूट-कूद कर भर दी थी कि वे सब एंक ही भारत माता की सस्तान हैं 1
इसलिए उनसे किसी भी तरह का कारई भी भेदनमाव रहना महीं चाहिए ।
सुमारे बीच में साम्प्रदाधिक भेद-माव का छाया भी शव ने रही और हमनें
यह समफ लिया कि हमारे देवा में इसको विदेशी सरकार ने पैदा किया है।
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